विधान परिषद में उठा वित्त विहीन शिक्षकों का मसला, न्यूनतम मानदेय की मांग

लखनऊ, विधान परिषद के मानसून सत्र के पहले दिन शिक्षक नेता ध्रुव कुमार त्रिपाठी ने प्रदेश में वर्ष 1987 में इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम की धारा 7 क के अंतर्गत स्थापित होने वाले वित्त विभिन्न माध्यमिक विद्यालयों का मुद्दा उठाया।
उनका कहना था कि सरकार को चाहिए कि वित्तविहीन शिक्षकों के लिए न्यूनतम मानदेय का निर्धारण किया जाए। जिससे इन विद्यालयों में कार्यरत शिक्षको का जीविकोपार्जन हो सके।
विधानपरिषद सदस्य ध्रुव कुमार त्रिपाठी ने कहा कि सरकार ने किसानों के लिए किसान सम्मान निधि देकर उनका गौरव बढ़ाया। सरकार आउटसोर्सिंग कर्मियों को रख कर उन्हें मानदेय दे रही है। ऐसे में 38 वर्ष के व्यतीत होने के बावजूद वित्त विहीन विद्यालयों के शिक्षकों को सरकार न्यूनतम मानदेय नही दे पा रही है। उन्होंने कहा कि 24 हजार विद्यालयों के शिक्षकों ने कौन से पाप किये हैं।
ध्रुव कुमार त्रिपाठी का कहना था कि समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था इन शिक्षकों पर लागू न होने से कई परिवार भूख से अपने प्राणों की आहुति दे चुके हैं। वहीं प्रदेश के शिक्षकों द्वारा इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 के अनुसार सेवा नियमावली बनाने एवं समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान करने की मांग की जा रही है। इसके बावजूद सरकार इस दिशा में प्रयास नहीं कर रही है।
उन्होंने कहा कि नाम मात्र के अल्प वेतन पर काम करने के लिए बाध्य इन शिक्षकों के लिए अभी तक कोई सेवा नियमावली लागू नहीं की गई है। उन्होंने इस दौरान वित्तविहीन शिक्षकों को 30000 मानदेय दिए जाने की मांग उठाई। वही विधान परिषद सदस्य राज बहादुर सिंह चंदेल ने भी सरकार के समक्ष मानदेय का मसला उठाया।
विधानपरिषद सदस्य द्वारा उठाये गए सवाल को लेकर माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री गुलाब देवी ने कहां की इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम 1921 के अंतर्गत वित्त विहीन शिक्षकों पर आने वाले खर्च को स्कूल प्रबंधन द्वारा अपने सोर्स से वहन करने का जिक्र किया गया है। ऐसे में इस सवाल का जवाब भी इसी में निहित है। जिस पर सदस्य ध्रुव कुमार त्रिपाठी ने विधान परिषद सभापति से न्यूनतम मानदेय के निर्धारण के साथ ही सेवा नियमावली तैयार कराने के निर्देश को लेकर अपील की।