विरोधियों की आवाज को आपराधिक अवमानना के जरिए नहीं दबाया जा सकता- सुप्रीम कोर्ट
August 25, 2016
नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कड़ी टिप्पणी में कहा कि सार्वजानिक पदों पर बैठे लोगों को आलोचना से नहीं डरना चाहिए और हर आलोचक के खिलाफ अवमानना का मुकदमा नहीं दर्ज किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर तमिलनाडु की जयललिता सरकार को फटकार लगाई है। उनसे कहा गया है कि विरोधियों की आवाज को आपराधिक अवमानना के जरिए नहीं दबाया जा सकता। जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एक स्वस्थ लोकतंत्र इस तरह से नहीं चल सकता। सरकार किसी भी आलोचना करने वाले के खिलाफ इस तरह अवमानना का मुकदमा चलाने की इजाजत कैसे दे सकती है? सरकार को ऐसे मामलों में अभियोजन के लिए इजाजत देने में संयम बरतना चाहिए। तमिलनाडु की डीएमडीके पार्टी के अध्यक्ष विजय कांत की अर्जी पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां की हैं।
विजय कांत ने अर्जी में कहा है कि जयललिता सरकार विरोधियों की आवाज को खामोश करने के लिए आपराधिक मानहानि की धारा का इस्तेमाल कर फर्जी मुकदमे दर्ज कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी ताकत का बेजा इस्तेमाल कर रही है। अपने खिलाफ दर्ज कई मुकदमों को खारिज करवाने की मांग विजय कांत ने अपनी अर्जी में की है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि किसी सरकारी नीति की आलोचना करना अवमानना का आधार नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर से जयललिता सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि उसने आपराधिक अवमानना के अब तक कितने मुकदमे चलाने की इजाजत दी है। 22 सितंबर तक जयललिता सरकार को नोटिस का जवाब देना है।
जयललिता सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसने अपने विरोधियों के खिलाफ अब तक आपराधिक अवमानना के 213 मुकदमे दर्ज किए हैं। गौरतलब है कि बीती सुनवाई में भी कोर्ट ने जयललिता सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। कोर्ट ने तब भी आपराधिक अवमानना के मुकदमे चलाने के लिए सरकार की तरफ से दी गई इजाजत का पूरा ब्योरा मांगा था।