विश्व की मानसिक, नैतिक और पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान है भारत की आध्यात्मिक विरासत में : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु

नयी दिल्ली, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने भारत को आधुनिकता और आध्यात्मिकता का संगम करार देते हुए कहा है कि इसकी आध्यात्मिक विरासत , विश्व की मानसिक, नैतिक और पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान प्रदान करती है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने शनिवार को हैदराबाद में ब्रह्माकुमारीज़ शांति सरोवर की 21वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि पिछले दो दशकों में शांति सरोवर ज्ञान, शांति और प्रेरणा का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र बन चुका है। सम्मेलन के विषय “भारत का कालातीत ज्ञान: शांति और प्रगति का मार्ग” को मौजूदा समय में विश्व समुदाय में आ रहे बदलावों के मद्देनजर बेहद प्रासंगिक बताते हुए उन्होंने कहा कि इन बदलावों के साथ अनेक गंभीर चुनौतियां भी सबके सामने हैं जैसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं, सामाजिक संघर्ष, पारिस्थितकीय असंतुलन और मानवीय मूल्यों का पतन। उन्होंने कहा, ” हमें यह याद रखना है कि केवल भौतिक विकास से जीवन में सुख और शांति की प्राप्ति नहीं होती है। इसके लिए आंतरिक स्थिरता, भावनात्मक समझ और मूल्यों पर आधारित सोच आवश्यक है।”

राष्ट्रपति ने कहा कि मौजूदा समय में भारत की शाश्वत ज्ञान-परंपरा अत्यंत उपयोगी है।” हजारों वर्षों से हमारी सभ्यता ने उन सिद्धांतों को अपनाया है जो सत्य, न्याय, करुणा, आत्म-अनुशासन और प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित हैं। इन मूल्यों ने हमारे समाज को सही दिशा दी है और ये मूल्य वर्तमान चुनौतियों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं।”

उन्होंने कहा कि भारत की आध्यात्मिक विरासत, विश्व की मानसिक, नैतिक और पर्यावरण संबंधी समस्याओं का समाधान प्रदान करती है। उन्होंने कहा,” आधुनिकता और आध्यात्मिकता का संगम हमारी सभ्यता की सबसे बड़ी शक्ति है। वसुधैव कुटुम्बकम् का भाव — पूरी दुनिया को एक परिवार मानने की सोच — आज वैश्विक शांति की सबसे बड़ी आवश्यकता है।” भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा ने हमें सत्य, अहिंसा और सह-अस्तित्व का संदेश दिया है। भारत ने योग के माध्यम से विश्व को संदेश दिया है कि स्वस्थ शरीर और स्थिर मन होने से नागरिक राष्ट्र और समाज की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।

उन्होंने कहा कि तनावग्रस्त और भाग दौड़ के जीवन में योग ने विश्व को तनाव कम करने तथा जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों की रोकथाम करने का प्रभावी उपाय दिया है। यह अभ्यास आयु, वर्ग और संस्कृति की सीमाओं से परे जाकर मानवता को एक ही सूत्र में बांधता है। यह केवल शारीरिक क्रियाओं का अभ्यास नहीं, बल्कि विचार, व्यवहार और जीवन-दृष्टि को सकारात्मक दिशा देने की एक समग्र साधना है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की पहल ने इस प्राचीन भारतीय ज्ञान को वैश्विक मान्यता दिलाई है और भारत को शांति एवं मानव कल्याण के अग्रदूत के रूप में स्थापित किया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार के लक्ष्य भी इस शाश्वत ज्ञान से गहराई से जुड़े हुए हैं। समावेशी विकास का लक्ष्य जिसमें समाज के वंचित वर्गों और हाशिये पर रह रहे लोगों का विकास शामिल है, यह लक्ष्य उपनिषदों के समावेशी विचारों के अनुरूप है। ” प्राचीन गुरुकुल प्रणाली में आत्म-अनुशासन और कौशल विकास पर बल दिया जाता था। आज आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा से हमें स्वावलंबन की प्रेरणा मिलती है। सतत विकास, स्वच्छ ऊर्जा और पर्यावरण संरक्षण के प्रयास भी प्रकृति से प्रेम और उसके साथ सह-अस्तित्व की भारतीय सोच से प्रेरित हैं।”

उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता सामाजिक एकता और राष्ट्रीय प्रगति में मजबूत आधार की तरह काम करती है। जब व्यक्ति मानसिक स्थिरता, नैतिक मूल्यों और आत्म-नियंत्रण का विकास करता है, तो उसका व्यवहार समाज में अनुशासन, सहिष्णुता और सहयोग को बढ़ावा देता है। उन्होंने कहा कि ऐसे व्यक्ति राष्ट्र के निर्माण में भी सक्रिय योगदान देते हैं। आध्यात्मिक चेतना से प्रेरित लोग अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहते हैं और समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की दिशा में प्रयासरत रहते हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि दशकों से ब्रह्माकुमारीज़ संगठन वैश्विक भारतीय मूल्यों को विभिन्न देशों तक पहुँचा रहा है। यह संगठन लोगों में शांति और सकारात्मकता का विकास करके समाज की नैतिक और भावनात्मक संरचना को मजबूत बना रहा है। इस प्रकार यह संगठन राष्ट्र-निर्माण में सार्थक योगदान दे रहा है। उन्होंने कहा कि शांति सरोवर भी इस विश्वव्यापी संस्था का उत्कृष्ट केंद्र है। ” यह परिसर आज एक बड़ा आध्यात्मिक प्रशिक्षण केंद्र बन चुका है। पिछले 21 वर्षों में इसने मूल्य-आधारित व्यक्तित्व के निर्माण, मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन और भावनात्मक क्षमता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”

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