आधुनिकता और शहरीकरण से हमारा जीवन भले ही सुविधाजनक हो रहा है, लेकिन यह हमारे स्वास्थ्य को भी बहुत प्रभावित कर रहा हैं। हम जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वह जहरीले प्रदूषक तत्वों और गैसों से भरी है, हमारे फेफडों तथा रेस्पीरेटरी सिस्टम को गम्भीर नुकसान पहुंचा रही हैं। इसका परिणाम है कि अस्थमा और सांस लेने में तकलीफ जैसे क्रोनिक ऑब्सट्रेक्टिव पल्नमरी डिजीज के मामले बढ़ रहे हैं। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि जो हवा हम सांस के रूप में लेते है 40 सिगरेटों के धुएं जितनी खराब है। वास्तव में यह अनुमान लगाया गया है वैश्विक स्तर पर 2020 तक यह मौत का तीसरा सबसे बडा और विकलांगता का पांचवा सबसे बडा कारण बन जाएगा।
हम विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान को देखें तो दुनिया भर में 80 मिलियन लोग मध्यम से गंभीर स्तर की सीओपीडी समस्या से पीडित है। नई दिल्ली स्थित बी.एल.के सुपरस्पेशैलिटी हॉस्पिटल के रेस्परेटेरी मेडिसीन, एलर्जी और स्लीप डिस्ऑडर के विभागअध्यक्ष डॉ. स्ंादीप नायर का कहना है कि वाहनों से निकल रहे धुएं, बडे पैमाने पर औद्योगिकीकरण, निर्माण गतिविधियां और कारों से निकल रही गैसेज में माइक्रोपार्टिकल्स जो जलने वाली गैसेज और ऑर्गेनिक कम्पाउंड्स वाले अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स का मिश्रण है, जो सांस को रोकन वाली बीमारी जैसे सीओपीडी का कारण बनते है। जब ये छोटे-छोटे कण हमारे श्वसन तंत्र में पहुंचते हैं, तो इनके प्रदूषक तत्व इसमें ऐसी क्रियाएं करते हैं जो हमारे फेफडों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।
अब तक यह समस्या बुजुर्गो, धूम्रपान करने वालों में और ग्रामीण क्षेत्रों जहां गोबर गैस या बायोमास का धुंआ रहता था, वहीं पाई जाती थी, क्योंकि ग्रामीण इन से उठने वाले धुएं के सीधे सम्पर्क में रहते थे। लेकिन अब हवा में प्रदूषक तत्वों, कालिख और कार्बन कणों, बदलते मौसम और काले धुएं के कारण सीओपीडी के मामले दिल्ली जैसे शहरों में भी बढ़ रहे है। सीओपीडी पहले फेफड़ों को खराब करता है, लेकिन सांस की समस्या और फेफड़ों के संक्रमण के कारण यह कई तरह की दिल की बीमारियां भी खड़ी कर देता है और स्ट्रोक का कारण बन सकता है। वास्तव में यह मल्टीऑर्गन बीमारी है, जिसमें हमारी हड्डियों सहित सारे अंग प्रभावित हो जाते है।
अब जब हम सीओपीडी का कारण समझ गए हैं, जो हमारे सांस लेने के रास्ते को संकरा कर देता है, तो अब यह महत्वपूर्ण है कि हम यह भी जानें कि यह हमारे स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करती है। सांस लेने के बड़े रास्तों में इन्फ्लेमेट्री रेस्पांस को क्रोनिक ब्रोंकाइटिस के रूप में जाना जाता है। कई बार यह हमारे फेफड़ों के गलियारे के टिश्यूज को नष्ट कर देता है, इससे इम्फेसेमा जैसे लम्बे समय और लगातार बढने वाला रोग हो सकता है। हालांकि सीओपीडी के ज्यादातर मरीज धूम्रपान करने वाले हैं, लेकिन प्रदूषित हवा भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
सीओपीडी के मरीजों के रक्त में कार्बनडाई ऑक्साइड और ऑक्सीजन का फैलाव नहीं हो पाता। इसके चलते फेफड़ों के जरिए पर्याप्त ऑक्सीजन रक्तवाहिनी में नहीं पहुंचती और शरीर में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा ज्यादा रह जाती है। इससे सांस लेने में समस्या होती है। डॉ. संदीप नायर का कहना है कि शारीरिक जांच में सीओपीडी के 50 प्रतिशत मामलों का पता नहीं चलता और जब तक फेफड़ों का पर्याप्त नुकसान नहीं पहुंचता तब तक लक्षण भी सामने नहीं आते। लेकिन छाती का एक्सरे और पल्नमरी फंक्शन टेंस्ट से बीमारी बढने का पता किया जा सकता है। क्रोनिक ब्रोंकाइटिस का मुख्य लक्षण यह है कि इसमें कम से कम तीन महीने तक लगातार कफ और बलगम बनता है।
अन्य लक्षणों में सांस में परेशानी, जोर से सांस लेना, छाती में जकडन, लगातार सांस सम्बन्धी संक्रमण पैदा होना, एडियों और पैरों में सूजन शामिल हैं। सीओपीडी का ज्यादातर उपचार ऐसा है जो व्यक्ति खुद भी कर सकता है। हाालांकि सीओपीडी की दवाइयां लम्बे समय तक चल सकती है, क्योंकि यह अन्य लक्षण उभरने से रोकती है। यदि आप सीओपीडी के मरीज हैं तो यह ध्यान रखिए कि डॉक्टर की सलाह के बिना दवाइयां बंद नहीं करनी है। इसके अलावा लोगों में नॉन इन्वेसिव वेंटीलेशन उपचार के बारे में जागरूकता का अभाव है। जबकि यह सांस लेने में तकलीफ दूर करता है और मौत की जोखिम को बहुत हद तक कम कर देता है। सीओपीडी की मध्यम या गंभीर अवस्था वाले मरीजों को एनआईवी दवाई दी जा सकती है। यह रक्त में कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर कम कर देती है और इससे मरीज सामान्य ढंग से सांस ले पाता है।
सीओपीडी या संास की समस्या की जोखिम वाले मरीजों को घर के अंदर ही रहने की सलाह दी जाती है, इसलिए यह जरूरी है कि ये मरीज अपने घर के आस-पास का वातावरण सही करें और नीचे बताए हुए जरूरी एहतियात बरतें।
घर में ही रहें… -धुएं और वायु प्रदूषण से बचें। -भले ही आपने सिगरेट छोड़ दी हो, लेकिन उन स्थानों से भी दूर रहे जहां दूसरे लोग सिगरेट पीते हैं, क्योंकि उनका धुआं यानी पैसिव स्मोकिंग भी आपके फेफडों के लिए उतना ही खराब है। बचाव के लिए आप बाहर जाते समय मास्क लगाइए।
सही मास्क चुनिए… -अपने लिए एन 95 मास्क चुनिए जो हवा के 95 प्रतिशत प्रदूषक तत्व फिल्टर कर देता है। सर्जिकल या बाजार में उपलब्ध अन्य मास्क आपके लिए उपयोगी नहीं है, इसलिए उन पर पैसा बर्बाद मत कीजिए।
अपने घर को धुएं से मुक्त रखिए… -मच्छर मारने की अगरबत्ती या अन्य अगरबत्ती कभी मत जलाइए, क्योंकि इनका धुआं आपकी सांस लेने की समस्या को और बढ़ा सकता है।
खूब पानी पीजिए… -एक दिन में कम से कम दो लीटर पानी जरूर पीजिए।
व्यायाम… -थोडा योगा या व्याायाम आपके श्वसन तंत्र की मांसपेशियों को बेहतर बनाएगा। ज्यादा थकाने वाला व्यायाम मत कीजिए और अपने डॉक्टर से पूछिए कि किस तरह का व्यायाम आप कर सकते हैं।
पोष्टिक भोजन लीजिए… -पोष्टिक भोजन आपकी ताकत और रोग प्रतिरोधक क्षमता दोनों को बढाएगा। बिना कुछ खाए घर से बाहर नहीं निकलें। जिन फलों में एंटी ऑक्सीडेट्स अधिक मात्रा में हो, उनका अधिकाधिक सेवन करें।