नाटिंघम, बचपन में हम सभी ने एक अदृश्य बल्ले के साथ कई अजीबोगरीब शॉट लगाने की कोशिश की हैं। हालांकि फिर हम बड़े हुए और हमें समझ आया कि इस तरह से शॉट लगाना कितना कठिन और असंभव है। साथ ही गेंदबाज़ प्रयास करता है कि आप उस दिशा में शॉट लगाए जहां फ़ील्डर पहले से ही तैनात हो।
ट्रेंट ब्रिज में सूर्यकुमार यादव हमारे अंदर छिपे बच्चे की तरह खेल रहे थे और मैदान के चारों तरफ़ हैरतअंगेज़ शॉट लगा रहे थे। यह तो सब जानते है कि आप अजीब पोज़िशन में आए बिना लेग स्टंप की फ़ुल गेंद को प्वाइंट के पीछे छक्के के लिए नहीं भेज सकते हैं। हालांकि सूर्यकुमार ने हल्का सा रूम बनाया, बैकफ़ुट को नीचे झुकाया, बल्ले का चेहरा खोला और अंतिम समय पर कलाइयों को मोड़ते हुए गेंद को डीप प्वाइंट फ़ील्डर से दूर भेजा।
क्रिस जॉर्डन की वह गेंद सीमा रेखा के बाहर जाकर गिरी। अगर उस गेंद पर सूर्यकुमार फ़्रंटफ़ुट पर आते तो शायद यॉर्क हो जाते। वह फ़ील्ड के अनुसार डाली गई सटीक गेंद थी लेकिन सूर्यकुमार ने जगह बनाते हुए उसे दर्शकों के बीच भेजा।
सिर्फ़ इतना ही नहीं। इससे पहले रिचर्ड ग्लीसन के विरुद्ध उन्होंने कवर प्वाइंट के ऊपर से छक्का जड़ा। शुरुआत में डेविड विली की गेंद पर स्वीप लगाई, जॉर्डन की सटीक शॉर्ट ऑफ़ लेंथ गेंद को एक्स्ट्रा कवर के ऊपर से ड्राइव किया गया और लियम लिविंगस्टन की छोटी लेग ब्रेक गेंद को शॉर्ट फ़ाइन लेग के सिर के ऊपर भेजा गया।
यह सब नेट में या अभ्यास के दौरान नहीं बल्कि 216 के लक्ष्य का पीछा करते हुए किया गया जिसमें सूर्यकुमार के अलावा किसी भारतीय बल्लेबाज़ ने 28 से ज़्यादा रन नहीं बनाए। 55 गेंदों का सामना करते हुए सूर्यकुमार ने 117 रन बनाए जिसमें केवल पांच बार वह नियंत्रण में नहीं थे। इससे कम ग़लतियों के साथ अब तक केवल पांच ही शतक बनाए गए हैं और उनमें से भी केवल तीन पारियों में कुल स्ट्राइक रेट 200 से अधिक था।
इस पारी में सूर्यकुमार ने बल्लेबाज़ी करने की तकनीक को चुनौती दी। ऋषभ पंत की तरह विकेट के पीछे शॉट लगाने के लिए आपको जोखिम लेना पड़ता है। सूर्यकुमार ने इतनी आसानी के साथ वह शॉट लगाए और तेज़ गति से रन बटोरे।