वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्ध के इस दौर में चारों ओर एक ही प्रकार की हवा बह रही है। इस हवा के चलते हर कोई एक जीवन में सबकुछ हासिल कर लेने को उतावला होता जा रहा है। इस जीवनशैली ने लोगों को तरक्की के साथ कुछ नकारात्मक चीजें भी दी हैं। इनमें पहले स्थान पर आता है तनाव। तेजी से भागती जीवनशैली ने आदमी को आधुनिक होने का तमगा तो दिला दिया लेकिन इसी के साथ कई प्रकार के दबाव और इस दबाव के कारण तनाव की स्थिति का जन्म हुआ। तनाव के अस्तित्व में आने से बीमारियों के प्रकार में भी वृद्धि होती गई। तनाव के कारण उपजी बीमारियों में हाइपरटेंशन सबसे घातक बीमारी बन चुकी है।
एक समस्या कहा जा सकता है जो तनाव के कारण उत्पन्न होती है। इस समस्या से ही तमाम जानलेवा बीमारियां अस्तित्व में आई हैं। हाइपरटेंशन के साथ परेशानी का विषय यह भी है कि व्यक्ति कब इसकी चपेट में आ जाता है, उसे खुद भी पता नहीं चलता। लगातार तनाव में बने रहने की स्थिति से ही हाइपरटेंशन का जन्म होता है। इस बीमारी का असर सीधे तौर पर व्यक्ति के दिमाग पर पड़ता है। मानव शरीर को नियंत्रित करने या यूं कहें कि शरीर के बॉस की भूमिका दिमाग ही निभाता है। यही शरीर के अन्य महत्वपूर्ण हिस्सों को भी उनकी जिम्मेदारियों से परिचित कराता है। ऐसे में अगर इस हिस्से में ही समस्या उत्पन्न हो जाए तो जाहिर सी बात है इसका प्रभाव पूरे शरीर पर पड़ेगा। हाइपरटेंशन एक जटिल मेडिकल अवस्था है जिससे प्रभावित होने पर व्यक्ति को रक्तचाप में उतार-चढ़ाव की शिकायत होनी शुरू हो जाती है। हाइपरटेंशन हाई ब्लड प्रेशर का मुख्य कारण होता है। ब्लड प्रेशर हाई होने पर हृदय रोग की शिकायत आम हो जाती है।
हाइपरटेंशन को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है, प्राइमरी और सेकेंडरी। प्राइमरी हाइपरटेंशन में रक्तचाप के बढने का कोई मेडिकल कारण नहीं होता, यह अचानक ही बढने या घटने लगता है। हाइपरटेंशन के शिकार ज्यादातर लोग इसी प्रकार से पीड़ित रहते हैं। सेकेंडरी हाइपरटेंशन में ब्लड प्रेशर हाई होने के पीछे कोई न कोई कारण कोई न कोई वजह होती है, जैसे किडनी से जुड़ी बीमारियां, ट्यूमर आदि। हाइपरटेंशन के कारण सबसे बड़ा खतरा स्ट्रोक, हार्ट अटैक, हार्ट फैल्योर का रहता है। हाइपरटेंशन की समस्या होने पर शरीर में खून का प्रवाह सही ढंग से होना बंद हो जाता है। हाइपरटेंशन की समस्या लगातार बढने से स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसे रक्तचाप में उतार-चढ़ाव के आधर पर दो अन्य वर्गों में विभाजित कर दिया है, इनमें एक है प्रीहाइपरटेंशन और दूसरा है आइसोलेटेड सिस्टोलिक हाइपरटेंशन। दूसरे प्रकार के हाइपरटेंशन से ज्यादातर बुजुर्ग ही पीड़ित रहते हैं।
हाइपरटेंशन की समस्या उत्पन्न होते ही शरीर के अलग-अलग हिस्सों में छोटे-बड़े संकेत मिलने लगते हैं जिनमें सिर में दर्द बने रहना, हमेशा भ्रम की स्थिति में रहना, आंखों में परेशानी होने पर देखने में दिक्कत होना, अकसर ही जुकाम हो जाना और जी मिचलाना आदि मुख्य हैं। बड़ों को साथ-साथ अब तो बच्चों को भी हाइपरटेंशन ने अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। तनाव अब ऐसा जाल बन चुका है जो किसी भी आयु वर्ग को अपने शिकंजे में कस लेता है। हाइपरटेंशन के चलते होने वाली बीमारियों में हाइपरथायरोडिज्म, हाइपोथायरोडिज्म या हार्मोन्स का बढ़ जाना शामिल है। व्यक्ति के इन बीमारियों से पीड़ित होने पर उसमें तेजी से वजन कम होने, पाचन शक्ति पर प्रभाव पडने और सामान्य से अधिक पसीना आना जैसे लक्षण दिखाई पड़ते हैं। अब बात करते हैं हाइपरटेंशन के कारणों की।
दिनों-दिन जटिल होती हाइपरटेंशन की समस्या मुख्यतः जटिलताओं से भरी जीवनशैली का ही परिणाम है। जटिलताओं से भरी जीवनशैली में रहन-सहन, खान-पान, काम का अतिरिक्त बोझ समेत कई अन्य चीजें शामिल हैं जो इंसान को प्राइमरी हाइपरटेंशन का शिकार बना देती हैं। प्राइमरी हाइपरटेंशन मुख्यतः पोटेशियम डिफीसिएंसी जिसे हाइपोकालेमिया भी कहते हैं, ओवर वेट, सेडियम सेंसिटीविटी, जरूरत से ज्यादा अल्कोहल लेना, विटामिन-डी की कमी होना आदि के कारण पनपता है। कभी-कभी यह उम्र बढने के साथ और अनुवांशिक कारणों से भी प्रभावी हो जाता है। अनुवांशिक कारणों से अर्थ है अगर परिवार में माता-पिता में से कोई भी प्राइमरी हाइपरटेंशन से पीड़ित रहा है तो संतान में इस समस्या के होने की आशंका 90 प्रतिशत तक बनी रहती है। प्राइमरी हाइपरटेंशन के सक्रिय होने का एक मुख्य कारण मेटाबोलिक सिंड्रोम भी है। इसके अतिरिक्त उन बच्चों के प्राइमरी हाइपरटेंशन से ग्रस्त होने की आशंका और भी बढ़ जाती है जिनका वजन जन्म के समय सामान्य से काफी कम रहता है।