दिवाली की रात, श्मशान पर तांत्रिकों की असहज गतिविधियां

लखनऊ, दिवाली की अर्धरात्रि में श्मशान पर तांत्रिकों की रहस्यमयी गतिविधियों से दहशत का माहौल हो जाता है। भदोही में वरुणा व बसुही जैसी ऐतिहासिक नदियों की संगम स्थली स्थित श्मशान दिवाली की अर्धरात्रि में तमाम तांत्रिकों की रहस्यमयी गतिविधियों से स्तब्ध हो जाता है।
वाराणसी जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर भदोही जिले के सीमांत बिंदु वरुणा-बसुही नदियों के संगम स्थल पर स्थित श्मशान पर बना भूत भवन (भगवान शिव का मंदिर) दिवाली की रात में तांत्रिकों, ओझाओं व झाड़-फूंक करने वालों की संदिग्ध गतिविधियों से भर जाता है। श्मशान व मंदिर के लगभग पांच सौ मीटर के दायरे का क्षेत्र कंटीली झाड़ियों के झुरमुटों के बीच जलते दीए व झाड़ फूंक करने वाले तांत्रिकों की डरावनी आवाजें लोगों को असहज करती हैं।
सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं ने भले ही भौतिक रूप से भदोही को काशी (वाराणसी) से अलग कर दिया हो, लेकिन पौराणिक व आत्मिक रूप से कभी काशी से जुड़ा यह क्षेत्र आज भी पुरानी मान्यताओं व परंपराओं के मामले में काशी के क्रिया कर्मों से ओतप्रोत है।
दीपावली की अर्धरात्रि में लोग तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए श्मशान पर पहुंचकर अपने कर्मकांड में जुट जाते हैं। कहीं कोई मंत्र की सिद्धि करता होता है, तो कोई तांत्रिक भूतों- प्रेतों के दफन के लिए कब्र खोदने में लगा होता है। श्मशान के चारों तरफ उगी कटीली झाड़ियों के बीच से उठती डरावनी आवाजें लोगों को दूर तक सुनाई पड़ती हैं।
प्रसिद्ध तांत्रिक पंडित आलोक शास्त्री ने बताया कि यह क्षेत्र कभी काशी का ही अंश हुआ करता था। तंत्र-मंत्र से जुड़े तमाम क्रिया कर्म जहां वाराणसी के मणिकर्णिका श्मशान घाट स्थित पिशाच मोचन पर होते थे तो कुछ कर्म संगम घाट श्मशान पर सिद्ध किए जाते रहे हैं। मान्यता है कि प्रेत आत्माओं से परेशान लोगों का झाड़-फूंक अंततः श्मशान पर ही सिद्ध होता हैं। कहा जाता है कि वरूणा-बसुही संगम पर स्थित भूत भावन भगवान शिव प्रेतआत्माओं से जुड़ी तमाम समस्याओं का स्थाई समाधान कर प्रेत बाधाओं को खुद में समाहित कर नष्ट कर देते हैं।