लखनऊ, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने आज कहा कि संघीय कार्यपद्धति में राज्यपाल की उपयोगिता बरकरार है और उन्होंने इस पद पर रहते हुए केन्द्र और राज्य सरकार के बीच सेतु की जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी तरह से संविधान के दायरे में रहकर किया है। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में अपने दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने की पूर्वसंध्या पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल का जवाब देते हुए नाईक ने कहा कि राज्यपाल का पद खत्म करने के सुझाव पर वह कोई राय जाहिर नहीं करना चाहते, क्योंकि यह उनकी परिधि के बाहर है। हालांकि उन्होंने इतना जरूर कहा कि संघीय कार्यपद्धति में राज्यपाल की उपयोगिता है। वह केन्द्र और राज्य सरकार के बीच सेतु की तरह काम करता है। उन्होंने कहा कि पिछले दिनों दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की अन्तरराज्यीय परिषद की बैठक में राज्यपाल का पद खत्म किये जाने का सुझाव जिन कारणों से दिया गया, वह नहीं चाहते कि वे वजहें उत्तर प्रदेश में पैदा हों। ऐसी उनकी हमेशा कोशिश रहती है। राज्यपाल से सवाल किया गया था कि पिछले दिनों दिल्ली में हुई मुख्यमंत्रियों की अन्तरराज्यीय परिषद की बैठक में राज्यपाल का पद खत्म किये जाने के सुझाव के बारे में उनकी क्या प्रतिक्रिया है? विधान परिषद सदस्यों के मनोनयन और लोकायुक्त के चयन समेत कई मुद्दों को लेकर सरकार और राजभवन के बीच हुए गतिरोध के दौरान खुद पर एक राजनेता की तरह काम करने के लगे आरोपों पर नाईक ने कहा कि उन्होंने जो भी किया वह संविधान के दायरे में रहकर किया। राज्यपाल ने चुटकी लेते हुए कहा, कभी-कभी उनके काम से लोगों को फायदा हो जाता है। मैंने विधान परिषद सदस्य के रूप में संजय सेठ का मनोनयन नहीं किया। उनका भला ही हुआ और वह राज्यसभा चले गये। सत्तारूढ़ दल के कोषाध्यक्ष भी बन गये।