संघ के कार्यकर्ताओं ने उन्हें मंदिर में नहीं जाने दिया-राहुल गांधी

राहुल गांधी ने कहा कि संघ के कार्यकर्ताओं ने महिलाओं की मदद से उन्हें मंदिर में नहीं जाने दिया. कांग्रेस उपाध्यक्ष का 12 दिसंबर को असम के बरपेटा से जनिया विधानसभा क्षेत्र के मेदेरटरी तक करीब सात किलोमीटर पदयात्रा का कार्यक्रम था. गुवाहाटी से हेलीकाप्टर के जरिए राहुल स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 11 बजकर 15 मिनट पर बरपेटा के रामराय स्टेडियम के हैलीपैड पर उतरे. राहुल जिस हैलीपैड पर उतरे वो बरपेटा सत्र (मठ) के परिसर के बिलकुल पास था.
असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कहने पर कुछ भाजपा समर्थक महिलाएं बरपेटा सत्र के मुख्य द्वार के पास बैठ गईं और इनका मकसद राहुल का विरोध करने था.मुख्यमंत्री को अपने खुफिया तंत्र से इस बात की ख़बर राहुल के दौरे से एक दिन पहले ही पता चल गई थी. उन्होंने कहा कि अगर हम चाहते तो राहुल को लेकर सत्र में प्रवेश कर सकते थे, क्योंकि हमारे साथ महिला पुलिस भी थी. लेकिन पदयात्रा से पहले हम टकराव की किसी भी स्थिति का सामना करना नहीं चाहते थे. इसलिए हम उस समय सत्र में नहीं गए. लेकिन वापस लौटने के दौरान शाम को हम राहुल को लेकर सत्र में गए.राहुल ने वहां माथा टेका और आशीर्वाद लिया. मुख्यमंत्री ने दावा किया कि राहुल को बरपेटा के लिए रवाना होने से पहले गुवाहाटी में ही इस बात की जानकारी दे दी गई थी.
मुख्यमंत्री ने इस पूरे मामले की जांच करने का निर्देश दिया है. उन्होंने कहा कि ज़िला प्रशासन के स्तर पर क्या कमी रही और इस घटना के पीछे किसका हाथ है, इस बात की भी जांच होगी.
जबकि बरपेटा सत्र के सत्राधिकारी वशिष्ठ देव शर्मा ने मुख्यमंत्री पर झूठ बोलने का आरोप लगाया है. उन्होंने मीडिया के एक वर्ग से बातचीत में कहा कि सत्र को लेकर राजनीति अच्छी बात नहीं है, सत्र के नियमों को ध्यान में रख कोई भी व्यक्ति यहां आ सकता है.उन्होंने मुख्यमंत्री की उस बात पर नाराजगी जताई जिसमें कहा गया था कि आरएसएस समर्थित महिलाओं ने सत्र के गेट के पास राहुल का रास्ता रोकना था.
असम के बरपेटा सत्र (मठ) की स्थापना करीब 500 साल पहले वैष्णव संत श्री श्री माधव देव ने की थी. असम में छोटे-बडे कुल मिलाकर 926 सत्र है. संत महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव और श्री श्री माधव देव ने असम में इन सत्रों की स्थापना की थी.बाद में उनके अनुयायियों ने कुछ सत्र बनवाए. सत्र के प्रमुख को सत्राधिकारी कहते है. धार्मिक भावनाओं से जुड़े इन सत्रों की बड़ी मानयता है और ये बिना किसी दखलअंदाजी के निश्चित नियम और कायदे के तहत चलाए जाते हैं.