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सदनों की मर्यादा की रक्षा के ठोस उपाय सोचे जाएं : प्रधानमंत्री मोदी

नयी दिल्ली,  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद और विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारियों से सदनों की मर्यादा की रक्षा के विषय में ठोस उपाय सुझाने को कहा है । उन्होंने भ्रष्टाचार के मामलों में सजा प्राप्त जनप्रतिनिधियों के सार्वजनिक महिमामंडन की बढ़ती प्रवृत्ति की भी आलोचना करते हुये कहा है कि यह कार्यपालिका, न्यायपालिका और संविधान का अपनान है।

प्रधानमंत्री मोदी अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को वीडियो संदेश के माध्यम से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने पीठासीन अधिकारियों को समय के हिसाब से अनावश्यक हो गये कानूनों का अध्ययन कर उनका अंत कराने के बारे में सरकारों को संवेदनशील करने का आह्वान भी किया।

प्रधानमंत्री ने कहा, “एक समय था जब अगर सदन में कोई सदस्य मर्यादा का उल्ल्घंन करे, उस पर नियम के मुताबिक कार्रवाई हो, तो सदन के बाकी वरिष्ठ उस सदस्य को समझाते थे, ताकि भविष्य में वह ऐसी गलती न दोहराये और सदन के वातावरण को, उसकी मर्यादा को टूटने न दें, लेकिन आज के समय में हमने देखा है कि कुछ राजनीतिक दल, ऐसे ही सदस्यों के समर्थन में खड़े होकर उसकी गलतियों का बचाव करने लगते हैं।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसी स्थिति, “संसद हो या विधानसभा, किसी के लिये ठीक नहीं। सदन की मर्यादा को कैसे बनाए रखा जाए, यह चर्चा इस फोरम में बहुत आवश्यक है।” सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश , महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे , विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर और विभिन्न विधानसभाओं से आये पीठासीन अधिकारी उपस्थित थे।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज एक और बदलाव दिख रहा है कि अलदात से सजा पाये सदन के सदस्यों का महिमामंडन किया जाने लगा है। उन्होंने कहा, “पहले अगर सदन के किसी सदस्य पर भ्रष्टाचार का आरोप लगता था तो सार्वजनिक जीवन में सभी उससे दूरी बना लेते थे। लेकिन आज हम कोर्ट से सजा पाए भ्रष्टाचारियों का भी सार्वजनिक रूप से महिमामंडन होते देखते हैं।”

उन्होंने कहा, “ यह कार्यपालिका का अपमान है, यह न्यायपालिका का अपमान है, यह भारत के महान संविधान का भी अपमान है। उन्होंने सम्मेलन में इस विषय पर चर्चा कर भविष्य के लिए ठोस सुझाव दिये जाने की जरूरत पर बल दिया।”

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कोई भी जनप्रतिनिधि सदन में जैसा आचरण करता है, उसके देश की संसदीय व्यवस्था को भी उसी तरह से देखा जाता है। उन्होंने उम्मीद जतायी कि इस सम्मेलन से सदन में जनप्रतिनिधियों के व्यवहार और सदन के वातावरण को निरंतर सकारात्मक बनाने, उत्पादकता बढ़ाने के विषय में ठोस सुझाव निकालने में मदद मिलेगी ।

इस बार सम्मेलन में मुख्य रूप से विधानमंडलों की कार्यसंस्कृति एवं समितियों को और प्रभावी बनाने पर चर्चाएं होनी है। ये बहुत ही आवश्यक विषय हैं। आज जिस प्रकार देश के लोग जागरूकता के साथ हर जन प्रतिनिधि को परख रहे हैं, उसमें इस तरह की समीक्षा और चर्चायें बहुत ही उपयोगी होंगी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अमृतकाल में, आज देश जिन लक्ष्यों को तय कर रहा है, उनमें हर राज्य सरकार और वहां की विधानसभा की बड़ी भूमिका है। इसके लिए उन्होंने विधायिका और कार्यपालिका को मिलकर अपने विकास का लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि समितियों के सशक्तिकरण का विषय, आपके राज्य की आर्थिक प्रगति के लिए भी अहम है।

श्री मोदी ने पीठासीन अधिकारियों से गैरजरूरी कानूनों का अध्ययन कर उनका अंत कराने के लिए अपने अपने राज्य की सरकारों का ध्यान आकर्षित करने को कहा।उन्होंने कहा कि इसका देश के नागरिकों के जीवन पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव होगा। पिछले 10 वर्षों में, केंद्र सरकार द्वारा दो हजार से ज्यादा ऐसे कानून खत्म कराये जाने का उल्लेख करते हुये प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे न्याय व्यवस्था का सरलीकरण हुआ है और जीवन अधिक सहज हुआ है।

उन्होंने सम्मेलन में नारी सशक्तिकरण तथा प्रतिनिधित्व को बढ़ावा दिये जाने, युवा जनप्रतिनिधियों को सदन में ज्यादा से ज्यादा अवसर दिये जाने के विषय में भी विचार किये जाने पर बल दिया।