जालौन, यूं तो हम सभी अपने बड़े बुर्जुगों से लगातार सुनते ही आ रहे हैं कि सर्दियों में तबीयत बिगड़ने की आशंका अधिक रहती है इसलिए विशेष सावधानी रखना जरूरी है लेकिन चिकित्सा जगत से जुड़ें विशेषज्ञों का भी यह मानना है कि सर्दियों विशेषकर रात के समय तबीयत बिगड़ने की आंशका अधिक रहती है इसलिए किसी भी बीमारी के रात के समय उभरने या बढ़ने के खतरे को देखते हुए इस दौरान अतिरिक्त सावधानी बरतना जरूरी है।
यहां एमबीबीएस (एमडी) फिजिशियन डॉ़ देवेंद्र कुमार और एमबीबीएस (एमएस) सर्जन डॉ़ श्रीकांत तिवारी ने यूनीवार्ता से विशेष बातचीत में कहा कि हम सभी कभी ना कभी तो बीमार हो ही जाते हैं। कभी इंफेक्शन तो कभी बदलते मौसम के चलते सिरदर्द, बुखार, जुकाम जैसी समस्या हो ही जाती है।अक्सर लोगों की सेहत दिन की बजाए रात को बिगड़ती है और अगर तबीयत दिन में खराब हो गई तो रात में इसके लक्षण ज्यादा दिखते हैं।
इसके पीछे का मेडिकल कारण हैं ।दरअसल शरीर की नेचुरल कार्डिएक रिदम इसमें अहम रोल प्ले करती है। बॉडी की बायोलॉजिकल क्लॉक कई प्रोसेस को रेगुलेट करती है जिसमें हार्मोन रिलीज, टेम्परेचर कंट्रोल और इम्यून रिस्पॉन्स सब शामिल हैं। रात में डाइजेशन और सर्कुलेशन सहित शरीर के कुछ फंक्शन स्लो हो जाते हैं क्योंकि उस समय शरीर आराम कर रहा होता है। इसी के चलते सांस और जोड़ों के दर्द की दिक्कत भी बढ़ सकती है।
रात में, शरीर के कुछ फंक्शन जैसे डाइजेशन और सर्कुलेशन धीमे हो जाते हैं क्योंकि शरीर आराम कर रहा होता है। ब्लड सर्कुलेशन कम हो जाता है इसलिए इस मौसम में कुछ खास बातों का ख्याल रखना जरूरी रहता है। सर्दियों में हार्ट अटैक का खतरा काफी बढ़ जाता है।इस समय ठंड के चलते लोग फिजिकल एक्टिविटी कम करते हैं, जिसके कारण बीपी व कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ जाता है और यही हार्ट डिजीज का प्रमुख कारण बनता है। इसी के साथ खाने-पीने से जुड़ी लापरवाही जैसे बहुत ज्यादा फैट्स और कैलोरी वाला खाना दिल को नुकसान पहुंचाता है। प्रोसेस्ड फूड भी दिल को प्रभावित करता है।
स्ट्रेस और डिप्रेशन की समस्या भी सर्दी के मौसम में बढ़ जाती है और ये मानसिक तनाव भी हार्ट डिजीज को बढ़ावा देते हैं। सर्दी के मौसम में खांसी सर्दी जैसी सामान्य बीमारियां भी हार्ट डिजीज को बढ़ा सकती हैं क्योंकि बॉडी में इन्फ्लेमेशन बढ़ने से दिल पर अधिक दबाव पड़ता है इसके कारण भी हार्ट अटैक आ सकता है।
जिन्हें दमे की शिकायत है वह रात में ज्यादा हो जाती है। ऐसा शरीर में कोर्टिसोल लेवल में बदलाव होने के कारण होता है। यह लेवल रात के समय कम हो जाता जिसके चलते शरीर की इंफ्लेमेशन से लड़ने की ताकत कम हो जाती है। जब हम रात को लेटते हैं तो लेटने की वजह से एसिड रिफ्लक्स और नाक से जुड़ी दिक्कतें बढ़ जाती है क्योंकि लेटने की पोजिशन के चलते ग्रेविटी, म्यूकस के बाहर निकलने और पेट के एसिड के मूव करने में सपोर्ट नहीं करती है।
रात के समय ही स्ट्रेस और एंग्जायटी अधिक हो जाती है जिसके कारण कई बार दर्द और डिस्कम्फर्ट बढ़ जाता है। रात में इम्यून सिस्टम ज्यादा एक्टिव हो जाता है, जिससे शरीर को इंफेक्शन से लड़ने में मदद मिलती है हालांकि, इस प्रोसेस की वजह से इंफ्लेमेशन और बुखार भी हो सकता है। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे सेक्स हार्मोन रात में गिर जाते हैं, जिससे जलन या चिंता हो सकती है।
एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जो मासिक धर्म और गर्भावस्था जैसी कई प्रक्रियाओं में शामिल होते हैं। दिन के दौरान चरम पर हो सकते हैं लेकिन इनका स्तर, रात के दौरान गिर सकता है। जब रात में हार्मोन का स्तर गिरता है तो वे जलन या चिंता की भावनाओं का परिणाम हो सकते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार यही कारण उन कुछ कारणों में शामिल है जिनके चलते रात के समय ही ज्यादा तबीयत खराब हो सकती है, इसलिए विशेष सावधानी की दरकार होती है।