मेरठ, फ्लैट कल्चर हो या आलीशान बंगला। इन सभी में सर्दियों में पानी गर्म करने के लिए गीजर की आवश्यकता होती है। इसके लिए गैस गीजर बहुतायत में लग रहे हैं। गैस गीजर वाले कमरों व बाथरूमों में वेंटीलेशन नहीं होने से कार्बन मोनो ऑक्साइड लोगों से प्राणवायु ऑक्सीजन छीन रही है। हर रोज घरों में बंद बाथरूम में हादसे हो रहे हैं, कार्बन मोनो ऑक्साइड अदृश्य किलर का काम कर रही है। मेरठ के अस्पतालों में हर रोज ऐसे केस आ रहे हैं। शास्त्रीनगर डी ब्लाॅक के रहने वाले 30 वर्षीय समीर गीजर लगे बाथरूम में नहा रहे थे। अचानक वह बेहोश होकर गिर गए। परिजन तत्काल डॉक्टर के पास ले गए।
वहां से उन्हें आनंद अस्पताल में भर्ती कराया गया। घटना के कई दिन बाद भी वह ठीक नहीं हो पाए है। मेडिकल काॅलेज के प्रो. टीवीएस आर्य ने बताया कि गैस गीजर लगे बाथरूमों में हर रोज ऐसे हादसे हो रहे हैं। रोशनदान नहीं होने से बंद बाथरूम या कमरे में कार्बन मोनो ऑक्साइड का स्तर बढ़ने लगता है और वह ऑक्सीजन की जगह लेकर खून में मिल जाता है। इससे कार्बोऑक्सी हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ जाती है और व्यक्ति बेहोश हो जाता है। ज्यादा देर तक ऐसी हालत में रहने पर जान भी जा सकती है।
वरिष्ठ फिजिशियन डाॅ. विश्वजीत बैंबी का कहना है कि कार्बन मोनो ऑक्साइड अदृश्य किलर का काम करती है। अस्पताल में आए दिन इस तरह के केस आ रहे हैं। सर्वोदय नर्सिंग होम के डाॅ. नगेन्द्र ने बताया कि कार्बन मोनो ऑक्साइड से लोगों में सिरदर्द, कमजोरी, चक्कर आना, जी मिचलाना, बेहोशी की समस्या आ जाती है। जाड़े के दिनों में यह स्थिति ज्यादा आती है। इससे तीव्र विषाक्तता, कमजोर याद्दाश्त, हार्ट अटैक, हाई ब्लडप्रेशर आदि के बाद रोगी की मृत्यु तक हो जाती है। डाॅक्टरों का कहना है कि बिजली की किल्लत के कारण वेस्ट यूपी के शहरों में गैस संचालित उपकरणों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। गैस गीजर बनाने वाली कंपनियों को लोगों को इसके प्रयोग और होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करना चाहिए। लोगों को गैस सिलेंडर बाथरूम या कमरे से बाहर रखना चाहिए।