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सावधान, सरकारें गलत जानकारियां फैलाने के लिये कर रहीं हैं, सोशल मीडिया का इस्तेमाल

नई दिल्ली, सोशल मीडिया पर अक्सर सरकारें ये आरोप लगाती रहीं है कि लोग अफवाहें, झूठी खबरें आदि फैलाने के लिये इसका इस्तेमाल करतें हैं. लेकिन हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. अब तो सरकारें स्वयं अपने फायदे के लिये गलत जानकारियां फैलाने के लिये  सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहीं हैं.

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यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड ने सोशल मीडिया के प्रयोग पर एक रिपोर्ट पेश की है. रिपोर्ट में बताया गया है कि पब्लिक ओपिनियन बनाने और गलत जानकारी फैलाने के लिए, दुनियाभर की सरकारें अपने पास साइबर ट्रूप्स रखती हैं, जो फेसबुक, ट्विटर जैसे दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल  करती हैं.

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शोध मे, यह पाया गया है कि सरकारें घरेलू स्तर पर या बाहरी देश के लोगों के बीच ओपिनियन को आकार देने के लिए सोशल मीडिया टूल्स का इस्तेमाल करती हैं.  ये रणनीति तानाशाही सरकारों के साथ-साथ लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी सरकारों द्वारा भी इस्तेमाल किया जाता है.

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सरकारें ओरिजनल कंटेंट कहां से बन रहा है इसे सामने ना आने देने के लिए फेक अकाउंट्स का भी सहारा लेती हैं.  फेक अकाउंट्स का सहारा सरकारों के एजेंडे को प्रमोट करने के लिए किया जाता है. सरकारें सोशल मीडिया पर गुमराह करने वाली पोस्ट को वायरल करने के लिए ऑटोमेशन सॉफ्टवेयर (बोट्स) का इस्तेमाल करती हैं. जो मानव यूजर की तरह हीं प्रतीत होती हैं.

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 सरकारों के सपोर्ट वाले ऑनलाइन ग्रुप्स की आदतें अलग-अलग होती हैं. ये फेसबुक में कमेंट करने, ट्विटर पर पोस्ट करने से लेकर व्यक्तिगत रूप से एक-एक इंसान को टारगेट करने जैसी होती हैं. सरकारों के ये आनलाईन ग्रुप मैक्सिको और रूस में पत्रकारों का शोषण तक कर चुके हैं.वहीं वियतनाम में ब्लागर्स अपनी तरह की खबरें फैलाने का काम करते हैं.

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ऑक्सफोर्ड के कम्प्यूटेशनल प्रोपेगेंडा रिसर्च प्रोजेक्ट की लीड ऑथर और रिसर्चर सामन्था ब्रेडशॉ का मानना है कि सोशल मीडिया, प्रोपेगेंडा कैंपेन को पहले की तुलना में ज्यादा मजबूत और संभव बनाती हैं. प्रोपेगेंडा सरकारों द्वारा उपयोग में लाया जाने वाला एक डार्क आर्ट है जिसे  डिजिटल टूल्स और ज्यादा एंडवांस बनाती हैं.

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सरकारें पिछले कुछ सालों में एक्टिविस्टों से सीख लेकर काम करने लगी हैं. जिस तरह एक्टिविस्ट जानकारी फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती हैं उसी तरह सरकारें भी करने लगी हैं.

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सामन्था ब्रेडशॉ का कहना है कि मुझे नहीं लगता कि लोग ये जानते होंगे कि कितनी सरकारें उन तक पहुंचने के लिए इन साधनों का उपयोग करती हैं. ये बहुत हद तक छिपा हुआ है. इस रिपोर्ट से ये आशंका जताई जा सकती है कि भारत की राजनीतिक पार्टियां  सोशल मीडिया पर लोगों को गुमराह करने के इस पैंतरे से अछूती नहीं होगी.

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