नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर अपने सोमवार को अहम फैसले में कहा कि धर्म के आधार पर वोट देने की कोई भी अपील चुनावी कानूनों के तहत भ्रष्ट आचरण के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने एक अहम फैसले में सोमवार को कहा कि प्रत्याशी या उसके समर्थकों के धर्म, जाति, समुदाय, भाषा के नाम पर वोट मांगना गैरकानूनी है।
चुनाव एक धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया है और इस आधार पर वोट मांगना संविधान की भावना के खिलाफ है। उम्मीदवार ऐसा करता है तो यह जन प्रतिनिधि कानून का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के आधार पर व्यवस्था दी कि चुनाव कानून में उनका शब्द का अर्थ व्यापक है और यह उम्मीदवारों, मतदाताओं, एजेंटों आदि के धर्म के संदर्भ में है। बहुमत का विचार हालांकि यह था कि चुनाव कानून में उनका शब्द केवल उम्मीदवार के संदर्भ में है।
सुप्रीम कोर्ट में बहुमत का विचार प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति एल एन राव, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे का था, जबकि अल्पमत का विचार न्यायमूर्ति यू ललित, न्यायमूर्ति ए के गोयल और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का था। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में एक याचिका दाखिल की गई थी, इसके तहत सवाल उठाया गया था कि धर्म और जाति के नाम पर वोट मांगना जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत करप्ट प्रैक्टिस है या नहीं। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-123 (3) के तहत उसके धर्म की बात है और इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को व्याख्या करनी थी कि उसके धर्म का दायरा क्या है? प्रत्याशी का या उसके एजेंट का भी।