नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है। गर्भपात कानून के मुताबिक बीस हफ्ते से ज्यादा के भ्रूण को हटाने की मनाही है।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 फरवरी को एक महिला को उसके 23 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत नहीं दी थी। उस भ्रूण में डाउन सिंड्रोम की समस्या थी। महिला के भ्रूण के बारे में मेडिकल बोर्ड की राय थी कि भ्रूण से पैदा हुए बच्चे को बचने की संभावना है। मेडिकल बोर्ड की इसी राय पर गौर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महिला को भ्रूण हटाने से मना कर दिया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये एक बड़ा दुखद मसला है कि एक मां को मानसिक रूप से विक्षिप्त बालक का पालन-पोषण करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी को मुंबई की एक 22 वर्षीया महिला के गर्भ में पल रहे 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने की इजाजत दी थी।
मुंबई के केईएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे के बचने की उम्मीद कम है क्योंकि उसकी किडनियां नहीं है। अस्पताल की रिपोर्ट देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिला को 24 हफ्ते के भ्रूण को हटाने का आदेश दिया। 16 जनवरी को भी सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई की एक 22 वर्षीय महिला को उसके गर्भ में पल रहे असामान्य भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दी थी। उसका भ्रूण भी 24 हफ्ते का था। उक्त महिला की मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक भ्रूण की खोपड़ी विकसित नहीं हुई है और इसके जीवित बचने की उम्मीद बहुत कम थी। पिछले साल 25 जुलाई को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक रेप पीड़िता को 24 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दी थी। उस महिला की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया था कि गर्भ में कई जन्मजात विसंगतियों की वजह से पीड़िता की जान खतरे में है। रिपोर्ट में कहा गया था कि अगर गर्भ को गिराया नहीं गया तो महिला की शारीरिक और मानसिक रूप से नुकसान उठाना पड़ सकता है। बोर्ड ने सलाह दी कि पीड़िता का गर्भ 24 सप्ताह का होने के बावजूद उसका सुरक्षित तरीके से गर्भपात किया जा सकता है।