लखनऊ, स्वराज अभियान, उत्तर प्रदेश के संगठनात्मक चुनाव का आखिरी दौर शनिवार को संपन्न होना था, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव को लेकर हुए हंगामे और बैठक के बहिष्कार ने पूरी चुनाव प्रक्रिया पर सवालिया निशान लगा दिया है। लखनऊ के जिलाध्यक्ष अनुराग यादव सहित कई पदाधिकारियों ने स्वराज अभियान के राष्ट्रीय महासचिव प्रो०अजीत झा पर मनमानी कर प्रदेश अध्यक्ष के पद चुनाव को प्रभावित करने का आरोप लगाते हुये बैठक का बहिष्कार किया। जहां एक ओर सिर्फ कयास ही लगाए जा रहे थे कि लखनऊ में चुनाव का केवल दिखावा किया जा रहा है। इसकी पूरी पटकथा पहले ही लिखी गई है। वह पूरी तरह से सच निकली।
राजधानी के संगीत नाटक अकादमी में स्वराज अभियान, उत्तर प्रदेश के संगठनात्मक चुनाव की प्रक्रिया शनिवार को सुबह 11 बजे शुरू हुई। जैसे ही मनोनीत सदस्यों की सूची पेश की गई, वैसे ही विभिन्न जिलों से आए प्रतिनिधियों के विरोध के स्वर मुखर हो गए। तमाम लोगों ने कहा कि वे किसी एक व्यक्ति द्वारा बनाई गई सूची को खारिज करते हैं। इसमें कोई पारदर्शिता नहीं अपनाई गई है। प्रदेश चुनावों को प्रभावित करने के लिए ही आनन-फानन में यह सूची जारी की गई है। इस पर राष्ट्रीय महासचिव प्रो०अजीत झा ने गोलमोल दलीलें देते हुये बिना उस पर वोट कराये सभी ४२ लोगों को राज्य संचालन समिति के सदस्य के रूप मे शामिल कर लिया।
राज्य कार्यकारिणी के सदस्यों के चुनाव मे ५० लोगों ने नामांकन किये लेकिन सर्व सहमति से २० सदस्य चुने गये। इसके तुरंत बाद ही, जैसे ही प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई, तो अर्चना श्रीवास्तव के नाम का प्रस्ताव आया। दूसरा प्रस्ताव अनुराग यादव के नाम का आया। अनुराग वर्तमान मे लखनऊ के जिलाध्यक्ष हैं। तबतक तीन और प्रत्याशी राम जनम, सुनील यादव और मोहम्मद हाशिम ने भी अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर दी। इन पांचों प्रत्याशियों में सबसे मजबूत दावेदारी अनुराग यादव की देखते हुए। प्रोफेसर अजीत झा ने संगठन के संविधान का हवाला देते हुये अनुराग यादव को प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव लड़ने के लिये अयोग्य घोषित कर दिया। जिस पर राज्य कार्यकारिणी के कई सदस्यों ने आपत्ति जताई। इसको लेकर प्रो०अजीत झा से अनुराग ने पूछा कि अचानक नियमों मे परिवर्तन क्यों हो रहा है, तो झा का कहना था कि संविधान में जिला अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए वोट कर सकता है, लेकिन चुनाव नहीं लड़ सकता है। लेकिन प्रोफेसर अजीत झा संविधान की वह लाइन नही दिखा सके जिस पर लिखा हो कि जिला अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनाव नहीं लड़ सकता है।
इस पर ज्यादातर सदस्यों ने आपत्ति जताई और लोगों का कहना था कि दो महीने तक चली चुनाव प्रक्रिया मे यही बताया गया कि जिले का अध्यक्ष प्रदेश कार्यकारिणी का सदस्य होगा। वह प्रदेश पदाधिकारी के किसी भी पद पर चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है और आज अनुराग के नामांकन करने के तुरंत बाद ही नई बात बताई जा रही है और स्वराज अभियान का संविधान बदला जा रहा है। दिल्ली में चुनाव प्रेक्षक की ट्रेनिंग के दौरान भी यही कहा गया कि जिला अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। फिर प्रोफेसर अजीत झा संविधान की गलत व्याख्या क्यों कर रहें हैं। प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले भी प्रो०अजीत झा ने कहा था कि कोई भी जिला अध्यक्ष प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ सकता है। फिर इतनी जल्दी नियम कैसे बदल गये। और अगर प्रोफेसर अजीत झा की बात सही मान भी ली जाये तो पूरे प्रदेश के संगठन के चुनाव ही गलत हुये हैं. इसलिये सभी जिलों की कमेटियां भंग कर दुबारा चुनाव कराये जाये।
इसको लेकर प्रो. झा का कहना था कि वह एसा नही कर सकते हैं। पूरे मामले से रुष्ट होकर अनुराग यादव सहित कई पदाधिकारियों ने यह कहकर बैठक का बहिष्कार कर दिया, कि मैं पार्टी फोरम पर चुनाव के घटनाक्रम की पूरी रिपोर्ट दूंगा और शीर्ष नेताओं को स्वराज अभियान के राष्ट्रीय महासचिव प्रो०अजीत झा द्वारा की गई मनमानी तथा प्रदेश अध्यक्ष के पद चुनाव को प्रभावित करने के कुकृत्य से अवगत करवाऊंगा।