स्विट्जरलैंड ने अपने यहां निष्क्रिय पड़े कई बैंक खातों को पहली बार सार्वजनिक किया है। यह पहला मौका है जब स्विट्जरलैंड ने ऐसी सूची जारी की है जिसका मकसद खाताधारकों के रिश्तेदारों और वंशजों को कोष का दावा करने का मौका देना है। सूची में केवल वही खातें शामिल हैं जिसमें कम-से-कम 500 स्विस फ्रैंक पड़े हैं और कम-से-कम 60 साल से इसका कोई दावेदार नहीं है। इनमें 2,600 लोगों के खाते हैं जिनमें से कम से कम छह भारतीय हैं। छह भारतीयों में चार के निवास स्थान भारत में बताए गए हैं, जबकि एक को पेरिस (फ्रांस) का निवासी बताया गया है। छठे व्यक्ति के निवास स्थान का खुलासा नहीं किया गया है। इनमें से तीन विदेशी मूल के व्यक्ति हैं। इनमें पिएरे वाचेक, कालरेट स्पेंसर तथा रोजमैरी बर्नेट शामिल हैं जिनका निवास स्थान बंबई (मुंबई का पुराना नाम) बताया गया है। बहादुर चंद्र सिंह को देहरादून का निवासी बताया गया है। वहीं डॉ. मोहन लाल को पेरिस का निवासी बताया गया है। किशोर लाल के निवास स्थान का खुलासा नहीं किया गया है। कुछ मामलों में खाताधारकों की जन्म की तारीख बताई गई है। जबकि स्पेंसर को जर्मनी का नागरिक बताया गया है।
यह सूची स्विट्जरलैंड में एक नया कानून बनने के बाद आई है। जिसमें बहुत पुराने निष्क्रिय खातों के मालिकों के नाम सालाना आधार पर प्रकाशित करने को अनिवार्य किया गया है। यह व्यवस्था 2015 से ही शुरू की गई है। एसबीए ने कहा कि दिसंबर 2015 में 2,600 से अधिक नामों की सूची जारी की गई है। इन खातों में करीब 4.4 करोड़ स्विस फ्रैंक है। इसके अलावा 80 लॉकर हैं। इन खाताधारकों के रिश्तेदार और वंशजों को इन खातों के दावों के लिए 1 से 5 साल में अपना दावा स्विस बैंकिंग ओम्बुड्समैन तथा स्विस बैंकर्स एसोसिएशन (एसबीए) को करना होगा।इन खातों में कुल जमा करीब 4.4 करोड़ स्विस फ्रैंक (करीब 300 करोड़ रुपये) हैं लेकिन भारतीयों के खातों की राशि के बारे में खुलासा नहीं किया गया है। 1950 के दशक के मध्य से 2,600 लोगों के खाते निष्क्रिय पड़े है।
सूची में सर्वाधिक लोग स्विट्जरलैंड के ही हैं। इसके अलावा इसमें जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, अमेरिका, तुर्की, ऑस्ट्रिया तथा विभिन्न अन्य देशों के खाताधारक शामिल हैं।