हरिद्वार, उत्तराखंड के हरिद्वार में जन्माष्टमी महोत्सव सोमवार को बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। यहां प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर में आज सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा। कनखल स्थित राधा कृष्ण मंदिर अति प्राचीन मंदिर है यहां दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। इसके अलावा बड़ा अखाड़ा उदासीन में भी परंपरागत रूप से जन्माष्टमी बड़े धूमधाम से बनाई जाती है जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं।
कनखल स्थित राधा कृष्ण मंदिर के पुजारी का कहना है कि राधा कृष्ण मंदिर अति प्राचीन मंदिर है और इसकी काफी मान्यता है l इसकी तुलना मथुरा में भगवान कृष्ण के मंदिर से की जाती है क्योंकि यहां पर राधा कृष्ण भगवान की मूर्तियों का स्वरूप वैसा ही है जैसा कि मथुरा में है। उन्होंने कहा कि जन्माष्टमी के दिन मंदिर में विशेष पूजा अर्चना की जाती है। हरिद्वार सहित दूर दराज के श्रद्धालु यहां पर आते हैं और सुबह से लेकर देर रात तक यहां पर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। यहां भगवान की आराधना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। हरिद्वार के कनखल स्थित गंगा के तट पर बने इस प्राचीन मंदिर में भगवान का ध्यान और पूजा करने से मन को शांति मिलती है।
वहीं श्रद्धालुओं का कहना है कि राधा कृष्ण मंदिर की काफी मान्यता है इसलिए वह अक्सर यहां भगवान कृष्ण और माता राधा के दर्शन करने आते हैं, आज का दिन विशेष है।
आज के दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। अतः बाल रूप में हम उनके दर्शन करते हैं और कृष्ण जन्माष्टमी पर व्रत पूजा आदि करते हैं तथा घरों में विशेष प्रसाद बनाया जाता है तथा लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। भगवान कृष्ण को लड्डू गोपाल के नाम से भी पुकारा जाता है। घरों में लोग लड्डू गोपाल की मूर्ति रखते हैं और प्रतिदिन उन्हें स्नान कराते हैं तथा उन्हें नए-नए वस्त्र पहनाते हैं। कई महिलाएं उन्हें अपने पुत्र के रूप में पूजती हैं और घी मक्खन से उनका भोग लगाती है।
बड़ा उदासीन अखाड़े के पुजारी का कहना है कि उनके आश्रम में सैकड़ो सालों से जन्माष्टमी पर मनाने की परंपरा चली आ रही है। यहां विशेष झांकियां भी लगाई जाती हैं और हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं तथा भगवान कृष्ण से की पूजा आराधना करते हैं। यहां कृष्ण भगवान के दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं ।
इसके अलावा आज बाजारों में भी काफी रौनक नजर आई। बालरूपी भगवान कृष्ण के तरह तरह के वस्त्रों से सजी दुकानें कई रोज पहले ही लगनी शुरू हो गई थी। आज भी लड्डू गोपाल जी के वस्त्रों की जमकर खरीददारी हुई ।