प्रयागराज,इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कार्यरत राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्ति में बड़ी गड़बड़ी का आरोप लग रहा है। इनकी नियुक्ति में व्यापक फेरबदल किया गया है और कई की पदोन्नति हुई तो कई हटाये गये हैं। बड़ी संख्या में नई नियुक्तियां भी की गयी है। विधि एवं न्याय मंत्रालय ने आठ फरवरी को ;159 इलाहबाद प्रधानपीठ एवं 130 लखनऊ खण्डपीठ द्धकुल 289 राज्य विधि अधिकारियो की नियुक्ति की है तो ;109 इलाहाबाद और 43 लखनऊद्ध कुल 151 राज्य विधि अधिकारियों को हटा दिया है। सरकार बनने के बाद 07 जुलाई 2017 को जारी सूची को चुनौती दी गई।
न्यायालय के आदेश पर महाधिवक्ता कीअध्यक्षता में पांच अधिकारियों की कमेटी गठित की गयी। जिसने समीक्षा कर अयोग्य लोगो को सूची से हटाते हुए अक्टूबर 17 में नई सूची जारी की। इसके बाद कई सूचियां जारी हुईएउनपर भी सवाल उठ रहे हैं। महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने कोर्ट को आश्वासन दिया था कि भविष्य में गलती दुहरायी नही जायेगी। जारी सूची में भी कई खामियां दिखाई दे रही है। एक दर्जन ऐसे अधिवक्ताओं को सूची में शामिल किया गया है। जो निर्धारित योग्यता न होने के कारण कार्यभार ग्रहण नही कर सकेंगे। आशंका है कि कमेटी ने विचार किये बगैर हड़बड़ी में सूची जारी कर दी गयी है।
विवेक का इस्तेमाल ही नहीं किया। आरोप है कि उच्च न्यायालय में जो विधि अधिकारी कभी.कभार आते थे वे न केवल सूची में शामिल हैं अपितु उन्हें महत्वपूर्ण पद पर तैनाती दी गयी है। जिन्होंने मजबूती से सरकार का पक्ष न्यायालय में रखा उन्हे हटा दिया गया है। अनुभवी लोगों को रखने के बजाय कभी कभार हाईकोर्ट आने वालों की सूची में भरमार यही इशारा कर रही है कि कमेटी को विश्वास में लिए बगैर सूची जारी कर दी गयी। कार्य में शुचिता के दावे का माखौल उड़ाया गया है। इस सूची से कई सवाल खड़े हो गए हैं। एक तो यह कि क्या सरकार कोर्ट के आदेश को दरकिनार कर कोर्ट की अवमानना नहीं कर रही है। दूसरा यह कि योग्य वकीलों को हटाकर सरकार समाज में किस प्रकार का संदेश देना चाहती है।