हाजी अली पर अदालती फैसला शरिया में दखल नहीं: इस्लामी विद्वान

MAZIDनई दिल्ली, हाजी अली दरगाह के मुख्य हिस्से में जाने को लेकर महिलाओं पर लगी रोक को बंबई उच्च न्यायालय द्वारा हटाए जाने के ऐतिहासिक फैसले और दरगाह कमेटी की ओर से इसका विरोध किए जाने की पृष्ठभूमि में देश के कुछ प्रमुख इस्लामी विद्वानों ने अदालत के फैसले की तारीफ करते हुए कहा है कि मुस्लिम महिलाओं को इबादत में मजहबी तौर पर पूरी बराबरी का हक हासिल है और यह अदालती आदेश किसी भी तरह से शरिया मामलों में दखल नहीं है।

जामिया मिलिया इस्लामिया में इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिश ने भाषा से कहा, इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं को इबादत को लेकर पूरी तरह से बराबरी का हक हासिल है। उनको मस्जिदों और दूसरे धार्मिक स्थलों पर जाने की पूरी आजादी है। अगर कोई यह कहता है कि किसी धार्मिक स्थल पर महिलाओं के जाने पर रोक होनी चाहिए तो इस्लामी नजरिए से यह गलत है।

उच्च न्यायालय ने बीते शुक्रवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हाजी अली दरगाह के मुख्य हिस्सों में महिलाओं के प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हटा लिया। अदालत ने कहा कि यह रोक संवैधानिक अधिकारों का हनन है और ट्रस्ट को सार्वजनिक इबादत स्थल में महिलाओं के प्रवेश को रोकने का अधिकार नहीं है।

फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद का कहना है, जब जन्नतुल बकी (मदीना स्थित कब्रस्तान) में महिलाओं के जाने पर पाबंदी नहीं है तो दरगाहों के भीतर कैसे हो सकती है। आखिरकार दरगाह भी कब्र होती है। मुझे नहीं लगता है कि अदालत के इस फैसले पर बवाल मचाने की कोई जरूरत है। इस फैसले को शरीयत पर हमला बताना भी गलत है। मैं इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने के भी खिलाफ हूं।

फैसले को पुरूषवादी मानसिकता के खिलाफ महिलाओं की बड़ी जीत करार देते हुए जानी मानी इस्लामिक नारीवादी शीबा असलम फहमी ने कहा, इस फैसले का स्वागत होना चाहिए। अदालत ने पुरूषवादी मानसिकता रखने वालों के मुंह पर ताला लगा दिया है जो महिलाओं को पीछे रखना चाहते हैं। इस्लाम के कुछ तथाकथित ठेकेदार शरिया को मनगढंत ढंग से पेश करते हैं। यह फैसला इन्हीं लोगों के खिलाफ जीत है। हाजी अली दरगाह ट्रस्ट का दावा है कि दरगाह के मुख्य हिस्से में महिलाओं के जाने पर रोक शरिया कानून के तहत लगाई गई थी और वह इस फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी।

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