हाजी अली मामले मे हाईकोर्ट के फैसले पर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने जताया सख्त एतराज
August 26, 2016
नई दिल्ली, बॉम्बे हाईकोर्ट ने शनि शिंगणापुर मंदिर के बाद अब मुंबई की हाजी अली दरगाह में महिलाओं के जाने की पाबंदी को गैरकानूनी करार देते हुए हटा दिया है। उधर कोर्ट के इस फैसले पर दरगाह प्रबंधन और कई मुस्लिम धर्मगुरुओं ने इस पर कड़ी आपत्ति जाहिर की है। ऑल इंडिया इमाम असोसिएशन (कुल हिन्द इमाम) के प्रेजिडेंट मौलाना साजिद रशीदी ने तो कोर्ट को शरिया कानून पढ़ने तक की सलाह दे डाली है। दरगाह ट्रस्ट इस मामले को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट जाने वाला है। कोर्ट ने ये पाबंदी हटाते हुए दरगाह जाने वाली महिलाओं की सुरख्सा राज्य सरकार को सुनिश्चित करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने संविधान का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा कि दरगाह में जहां तक पुरुषों को जाने का अधिकार है वहां तक महिलाएं भी जाएंगी। उधर मौलाना रशीदी ने कहा, ये बहुत ही गलत फैसला है ऐसा लगता है कि कोर्ट ने शरिया कानून पढ़े बिना फैसला ले लिया है। उन्होंने आगे कहा कि शरिया कानून के मुताबिक औरतों के लिए कुछ हदें तय की गई हैं, लोगों को इसमें दखल देने से पहले इसे जन लेना चाहिए। रशीदी ने आगे कहा कि इस मुद्दे को राजनीतिक खेल बना दिया गया है।
बता दें कि जस्टिस वीएम कनाडे और जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे की खंडपीठ मामले की सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ता जाकिया सोमन, नूरजहां सफिया नियाज की ओर से वरिष्ठ वकील राजीव मोरे ने हाई कोर्ट में पैरवी की। नियाज ने अगस्त 2014 में अदालत में याचिका दायर कर यह मामला उठाया था। गौरतलब है कि दरगाह ट्रस्ट हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाना तय है। ट्रस्ट ने ऊपरी अदालत में अपील के लिए 8 हफ्ते का समय मांगा था। जिस पर हाई कोर्ट 6 हफ्ते का समय दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने छह हफ्ते के लिए अपने आदेश पर भी रोक लगा दी है। यानी फिलहाल छह हफ्ते तक महिलाओं को दरगाह के गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी। याचिकाकर्ता के वकील राजू मोरे ने अदालत के फैसले की जानकारी देते हुए कहा, कोर्ट ने महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटा लिया है। अदालत ने इसे असंवैधानिक माना है. दरगाह ट्रस्ट ने कहा है कि वो हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। कोर्ट के फैसले पर याचिकाकर्ता जाकिया सोमन ने खुशी जताते हुए कहा कि यह मुस्ल्मि महिलाओं को न्याय की ओर एक कदम है, वहीं भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। जबकि एमआईएम के हाजी रफत ने कहा कि हाई कोर्ट को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए था, लेकिन अब जब उसने फैसला दिया है तो हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। भूमाता बिग्रेड की नेता तृप्ति देसाई ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि कोर्ट ने महिलाओं को समानता का अधिकार दिया है। क्या है ट्रस्ट का कहना गौरतलब है कि दरगाह के ट्रस्टी ने वर्ष 2011 में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी, जिसके खिलाफ भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन संगठन ने बॉम्बेई हाईकोर्ट में याचिका दायर करके महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी हटाने की मांग की थी, लेकिन ट्रस्टी ने इसे इस्लाम के खिलाफ बताकर महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी कायम रखा। दरगाह ट्रस्ट का कहना है कि ये प्रतिबंध इस्लाम का अभिन्न अंग है और महिलाओं को पुरुष संतों की कब्रों को छूने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। अगर ऐसा होता है और महिलाएं दरगाह के भीतर प्रवेश करती हैं तो यह पाप होगा। उधर राज्य सरकार ने कोर्ट से कहा कि महिलाओं को दरगाह के भीतरी गर्भगृह में प्रवेश करने से तभी रोका जाना चाहिए अगर यह कुरान में निहित है।