अहमदाबाद, गुजरात हाई कोर्ट ने कांग्रेस में शामिल हुए पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति ;पासद्ध के पूर्व नेता हार्दिक पटेल को एक निचली अदालत से मिली सजा पर रोक लगाने संबंधी उनकी अर्जी पर सुनवाई 26 मार्च तक स्थगित कर दिया। हार्दिक ने गत आठ मार्च को यह अर्जी अदालत में इसलिए दी थी ताकि उनके लोकसभा चुनाव लड़ने में कोई अड़चन नहीं आये। अगर हाई कोर्ट निचली अदालत की सजा पर रोक नहीं लगाता तो गत 12 मार्च को विधिवत कांग्रेस से जुड़ चुके हार्दिक इच्छा के बावजूद चुनाव नहीं लड़ पायेंगे।
न्यायमूर्ति ए जी उरैजी की अदालत ने आज उनकी अर्जी पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के वकील की ओर से जवाब देने के लिए और समय की मांग करने पर यह निर्णय लिया। अदालत अब 26 मार्च को सुनवाई करेगी। यह देखना रोचक होगा कि कांग्रेस पार्टी तब तक जामनगर सीटए जहां से चुनाव लड़ने की इच्छा हार्दिक ने जतायी हैए के लिए किसी उम्मीदवार की घोषणा करती है या नहीं। राज्य की सभी 26 सीटों पर एक साथ 23 अप्रैल को तीसरे चरण में मतदान होगा।
ज्ञातव्य है कि हार्दिक को राज्य के महेसाणा जिले के विसनगर में 23 जुलाई 2015 को एक आरक्षण रैली के दौरान हुई हिंसा और तत्कालीन स्थानीय भाजपा विधायक रिषिकेश पटेल के कार्यालय पर हमले और तोड़फोड़ के मामले में पिछले साल 25 जुलाई को एक स्थानीय अदालत ने दो साल के साधारण कारवास की सजा सुनायी थी। उन पर जुर्माना भी लगाया गया था। नियम के मुताबिक दो साल या उससे अधिक की सजा वाले लोग चुनाव नहीं लड़ सकते।
इसी वजह से हार्दिक ने आठ मार्च को एक बार फिर गुजरात हाई कोर्ट का रूख किया। उनके वकील रफीक लोखंडवाला ने यूएनआई को बताया कि उन्होंने अदालत में दी अर्जी में विसनगर की अदालत की सजा पर रोक लगाने का आग्रह किया गया है ताकि हार्दिक के चुनाव लड़ने में परेशानी न हो या उन्हें अयोग्य न ठहराया जा सके। ज्ञातव्य है कि उक्त मामले में अदालत ने कुल 17 में से 14 आरोपियों को बरी कर दिया था जबकि हार्दिक तथा दो अन्य को उक्त सजा सुनायी थी।
हार्दिक को बाद में हाई कोर्ट ने नियमित जमानत दे दी थी पर निचली अदालत के फैसले रद्द करने की उनकी अपील पर कोई फैसला नहीं दिया था। इसकी सुनवाई अब भी लंबित है। श्री लोखंडवाला ने कहा कि दो साल की सजा पर रोक नही लगाये जाने पर उनके मुवक्किल के चुनाव लड़ने में अयोग्यता का सवाल सामने आ सकता है। हार्दिक की अर्जी पर सुनवाई से पूर्व में हाई कोर्ट के एक अन्य जज न्यायमूर्ति आर पी धोलरिया ने इंकार कर दिया था। इसके बाद यह मामला न्यायमूर्ति उरैजी की अदालत में आया है।