पटेल समुदाय के लिये आरक्षण की मांग को लेकर आन्दोलन के दौरान भीड को उकसाने के आरोप में देशद्रोह का आरोप लगाये जाने को चुनौती देने वाले हार्दिक पटेल को उच्चतम न्यायालय से कोई राहत नहीं मिली। न्यायालय ने कहा कि इस मामले में गुजरात पुलिस की जांच पूरी होने के बाद ही उसकी याचिका पर सुनवाई की जायेगी। पीठ ने कहा ‘हम देशद्रोह मामले की सुनवाई स्थगित करना उचित और न्याय संगत महसूस करते हैं। इस मामले को जांच पूरी होने पर डेढ़ महीने बाद पांच जनवरी को सूचीबद्ध किया जाये।’ पीठ ने कहा‘हमें उच्च न्यायालय को दूसरे बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले में कार्यवाही करने देना चाहिए।’
न्यायमूर्ति जे एस खेहड़ और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ ने गुजरात पुलिस को निर्देश दिया कि हार्दिक पटेल के खिलाफ देशद्रोह के मामले की जांच डेढ़ महीने के भीतर पूरी की जाये और इसकी रिपोर्ट पांच जनवरी को सुनवाई से पहले सीलबंद लिफाफे में न्यायालय में पेश की जाये। पीठ ने पुलिस को यह भी निर्देश दिया कि देशद्रोह के मामले में शीर्ष अदालत की अनुमति के बगैर अदालत में आरोप पत्र दाखिल नहीं किया जाये।
शीर्ष अदालत ने गुजरात उच्च न्यायालय में एक अन्य मामले में लंबित कार्यवाही में भी हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। इस मामले में पुलिस का आरोप है कि हार्दिक पटेल ने खुद ही अपने अपहरण की कहानी रची थी। न्यायालय ने कहा यह स्पष्ट किया जाता है कि उच्च न्यायालय बंदी प्रत्यक्षीकरण से संबंधित आपराधिक अपील के मामले में सुनवाई जारी रख सकती है।’ शीर्ष अदालत ने आदेश पारित करने से पहले राज्य सरकार की ओर से अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी और हार्दिक पटेल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल के बयान दर्ज किये।