नई दिल्ली, केंद्र ने कहा है कि वह किसी पर हिंदी थोप नहीं रहा है बल्कि अन्य क्षेत्रीय भाषाओं की तरह उसे बढ़ावा दे रहा है। केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू जोकि राजभाषा विभाग के प्रभारी मंत्री भी हैं, ने सोमवार को यहां संवाददाताओं से कहा, हम हिंदी थोप नहीं रहे हैं बल्कि दूसरी भाषाओं की तरह इसे बढ़ावा दे रहे हैं। उनका बयान कुछ लोगों के आरोपों के परिप्रेक्ष्य में आया है कि मोदी सरकार गैर हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का प्रयास कर रही है।
द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने केंद्र पर आरोप लगाया है कि वह हिंदी नहीं बोलने वाले लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने का प्रयास कर रही है और देश को हिंडिया की तरफ धकेल रही है। राजभाषा से संबंधित संसद की समिति (सीपीओएल) की अनुशंसा को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा स्वीकार करने के बाद विवाद पैदा हुआ है। समिति ने अनुशंसा की है कि राष्ट्रपति और मंत्रियों सहित सभी हस्तियां और खासकर जो लोग हिंदी पढ़ और बोल सकते हैं उनसे अनुरोध किया जा सकता है कि वे अपने भाषण और बयान केवल हिंदी में दें। राष्ट्रपति ने कई अनुशंसाएं स्वीकार की हैं जिनमें विमानों में पहले हिंदी और फिर अंग्रेजी में उद्घोषणा करना भी शामिल है।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि हिंदी को थोपे जाने का आरोप पूरी तरह गलत है और सरकार का किसी पर भी हिंदी सहित कोई भी भाषा थोपने का इरादा नहीं है। उन्होंने कहा, मुझे आज प्रेस के एक वर्ग में आयी उन खबरों को पढ़कर दुख हुआ जिनके अनुसार द्रमुक नेता एमके स्टालिन ने केंद्र सरकार द्वारा हिंदी थोपने का आरोप लगाया है। नायडू ने कहा कि सीपीओएल की सलाह केवल अनुशंसात्मक है, अनिवार्य नहीं है। उन्होंने कहा, यह आरोप लगाना पूरी तरह गलत एवं शरारतपूर्ण है कि इस संबंध में (सांसद एवं केंद्रीय मंत्रियों के लिए हिंदी का इस्तेमाल अनिवार्य करना) अध्यादेश पारित किया गया है। नायडू ने कहा कि यह केवल सीपीओएल की सिफारिश है, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने की थी, जो दो जून, 2011 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के पास भेजी गयी थी और मौजूदा सरकार ने इस साल 31 दिसंबर को जिसे अधिसूचित किया। उन्होंने कहा कि द्रमुक 2011 में संप्रग में शामिल था जब यह सिफारिश की गयी और समिति ने इसे राष्ट्रपति के पास भेजा।