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होली पर्व की जननी बुंदेलखंड की भूमि, पर्यटन की ये हैं संभावनायें

झांसी,  रंगों का त्योहार हमारी संस्कृति से जुडा एक बेहद महत्वपूर्ण पर्व है जो पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व के हर कोने में जहां भी भारतीय लोग हैं उनके बीच पारंपरिक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। यह त्योहार क्यों मनाया जाता है यह तो हम सभी जानते हैं लेकिन इस पर्व की शुरूआत किस जगह से हुई अगर यह सवाल पूछा जाएं तो इसका जवाब है  बुंदेलखंड।

जी हां ज्यादातर अपने सूखे ए गर्मी और बदहाली के लिए चर्चा में रहने वाला बुंदेलखंड सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध है । यह क्षेत्र आर्थिक बदहाली और सांस्कृतिक संपन्नता का एक बेजोड़ नमूना है और इसकी एक छोटी से मिसाल है देश भर में रंग और मस्ती से जुड़े होलिका पर्व की शुरूआत इसी क्षेत्र से हुई। बुंदेलखंड में झांसी जिले के एरच कस्बे से होलिका पर्व की शुरूआत हुई। इस तथ्य के ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं कि सतयुग में आज का एरच श् एरिकच्छश् के नाम से जाना जाता था और यह असुरराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। इतिहासकार मानते हैं कि होली की शुरूआत एरच से ही हुई।

रंगोए भाईचारे और सौहार्द का यह त्योहार बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है और सोमवार से होली की मस्ती यहां लोगों पर चढने लगी है । मंदिरों में गुलाल और भजन कीर्तनों का दौर शुरू हो चुका है इस दौरान भक्त प्रहलाद और नरसिंह भगवान की शोभायात्रा निकाली गयीए जिसमें ढोल नगाडे और घोड़े भी शामिल हुए । शोभा यात्रा पूरे नगर भर में घूमी और लोगों ने इसका स्वागत किया। गुलाल और अबीर की उड़ती फुहारों के बीच भजन कीर्तन की धुनों पर लोग मस्ती का इजहार करते घूमते नजर आये ।

असुरराज हिरण्यकश्यप की राजधानी एरिकच्छ या एरिकेन वर्तमान एरच के समीप ही बेतवा नदी के किनारे डिकोली गांव है । इसे ऐतिहासिक रूप से डिकांचल पर्वत से जाेडा जाता है। कहा जाता है इसी पर्वत से भक्त प्रहलाद को नदी में फेंका गया था। यहां महल के अवशेष भी मिलते हैं जिसे असुरराज हिरण्यकश्यप के महल के भग्नावशेषों के रूप में देखा जाता है।

दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बड़ा भक्त था और यह बात उसके पिता को बिल्कुल पसंद नहीं थी।भगवान विष्णु के स्थान पर अपना नाम जपने के लिए पुत्र प्रहलाद को तैयार करने का पिता ने बहुत प्रयास किया अंत में हर प्रयास विफल होने के बाद हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद की हत्या के प्रयास शुरू किये लेकिन हर बार अपनी अटूट भक्ति और ईश्वर के आर्शीवाद से हिरण्यकश्यप प्रहलाद का कुछ भी नहीं कर पाया।

हिरण्यकश्यप ने आखिर में अपनी बहन होलिका को प्रहलाद को आग में जलाकर मारने का आदेश दिया। होलिका को वरदान था कि आग का उस पर कोई असर नहीं होगा। माना जाता है कि महल के पास ही होलिका भक्त प्रहलाद को गोदी में लेकर आग में बैठी लेकिन अंत में वह ही अग्नि में जलकर भस्म हो गयी भक्त प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हो पाया। यह भी मान्यता है कि हिरण्यकश्यप के वध के बाद इसी स्थान पर देवताओं और दानवों ने एक दूसरे पर अबीर गुलाल लगाकर आपसी दुश्मनी खत्म करने का संदेश दिया और तभी से होली की शुरूआत मानी जाती है। इस तरह रंगों के त्योहार होली की शुरूआत बुंदेलखंड के एरच कस्बे से हुई।

यहां मंदिरों में नरसिंह भगवान की भव्य प्रतिमाएं हैं । एरच में खुदाई के दौरान ऐसे कई प्रमाण मिले हैं जो साफ तौर पर बताते हैं कि यह ऐतिहासिक स्थान है जो दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी रह चुका है। कई मूर्तियां खुदाई में ऐसी भी मिलीं हैं जिसमें होलिका की गोद में भक्त प्रहलाद बैठे हैं। झांसी जिले के एरच कस्बे से जिस त्योहार की शुरूआत हुई वह आज पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। यहां से हिरण्यकश्यप काल की कई शिलाएं भी मिलीं हैं।

इस क्षेत्र को पर्यटन के एक बडे केंद्र के रूप में विकसित करने के हिमायती जहां एक ओर हिरण्यकश्यप महल की जीर्ण शीर्ण हालत से परेशान नजर आते हैं वहीं स्थानीय लोग इस महल की जर्जर दशा से खुश है क्योंकि वह चाहते हैं कि उनके बीच भक्त प्रहलाद की यादें बनीं रहें ए हिरण्यकश्यप याह उसकी बहन होलिका की नहीं। इस क्षेत्र को पर्यटन स्थल घोषित करने की मांग भी लंबे समय से चली आ रही है । अगर ऐसा हो पाये तो बुंदेलखंड के इस पिछडे इलाके से होने वाले पलायन को रोकने का एक मजबूत आधार तैयार कर सकता है।