मुंबई, बचपन में यौन शोषण का दंश झेलने वाले गणेश नल्लारी आज एक स्थापित कलाकार और चित्रकार हैं। वह अपने दुखद अतीत को भुलाकर जीवन में आगे बढ़ चुके हैं। अनस्पोकन नामक वृत्तचित्र (डॉक्युमेंट्री फिल्म) में गणेश ने अपने यौन शोषण और इससे बाहर निकलने के बारे में बताया है। जब उनसे पूछा गया कि किस बात ने उन्हें यह फिल्म बनाने के लएि प्रेरित किया तो उन्होंने बताया कि बचपन की इस दुखद घटना के बारे में बताने से पहले वह आत्मनिर्भर और योग्य बनना चाहते थे, ताकि वह फिल्म के जरिए इस दंश का सामना कर चुके लोगों को ताकत दे सकें और उन्हें सशक्त बना सकें। उन्होंने कहा कि जिन वयस्कों को लिए अभी भी बचपन की उन दुखद यादों से बाहर निकलना मुश्किल है, उनके लिए ज्यादा कुछ नहीं किया गया है। लोग अपने शरीर के जख्म के इलाज के लिए तो डॉक्टर के पास कई बार जाते हैं, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को लोग गंभीरता से नहीं लेते हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या वह अपना शोषण करने वाले शख्स से मिले हैं तो गणेश ने कहा, मैंने अपना यौन शोषण करने वाले का सामना बस उसे माफ करने के लिए जब वह मृत्यु शैय्या पर था तब किया था। मैंने उसे अपने लिए माफ किया। मैं इस बोझ के साथ पूरी जिंदगी नहीं जीना चाहता था। मुझे आगे बढ़ना था।
मैंने उससे बात करना बंद कर दिया था। उन्होंने बताया कि इस तकलीफ से उबरने में उनके माता-पिता ने उनकी बहुत सहायता की। उनके जीवन की शुरुआत एक तरह से 17 साल की उम्र में हुई। अपने माता-पिता की इकलौती संतान होने की वजह से वह इस दुखद घटना के लिए उन्हें दोषी महसूस नहीं कराना चाहते थे। गणेश का मानना है कि बच्चों के यौन शोषण का जिक्र होते ही उनके मन में उन बच्चों की छवि उभर आती है। यौन शोषण का प्रभाव दूरगामी होता है। अपने बच्चे को तकलीफ में देखकर माता-पिता भी एक तरह से पीड़ित बन जाते हैं। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसके मित्र और समाज पर भी दुखद घटना का साया मंडराता है। यह पूछे जाने पर कि बच्चों की सुरक्षा के लिए क्या सावधानियां बरतनी चाहिए तो चित्रकार ने कहा कि समाज को इस बारे में जागरूक होना चाहिए।
पारिवारिक सदस्यों, अध्यापकों, माता-पिता और हर कोई जो बच्चे के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, उसे अपनी भूमिका के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए। उन्हें सतर्क रहना चाहिए। हर कोई बच्चे की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है। यह एक कड़वी सच्चाई है कि शोषण करने वाला अपने ही परिवार का सदस्य या कोई विश्वासपात्र होता है। उन्होंने कहा कि समाज के लोग इसे आपसी या पारिवारिक मामला करार देकर चुप्पी साध लेते हैं। इस संबंध में समाज को जागरूक बनकर इसे रोकने की जरूरत है। इस दंश को झेलने वालों को सहारा देना चाहिए। गणेश के मुताबिक, इस बात को उन्होंने फिल्म में भी दर्शाया है। उन्होंने खुद को काले अतीत से लेकर वर्तमान तक कला के विविध स्वरूपों में मशरूफ रखा है। गणेश ने चित्रकारी (पेंटिंग) के जरिए फिल्म में अपनी ही कहानी कही है।