भारत में मृत्यु और अपंगता का तीसरा सबसे बडा कारण स्ट्रोक है। यह मरीज और उसके परिवार के लिए बहुत ही पीड़ादायक बीमारी है। हर दो सैंकड में किसी न किसी को स्ट्रोक होता रहा है, लेकिन दुर्भाग्य से कइयों को इसका उचित उपचार नहंी मिलता पाता है और इसका कारण है कि रोग की सही पहचान न होना। दुनिया भर में हर साल करीब 17 मिलियन स्ट्रोक के मामले होते है और इनमें से अकेले भारत में छह मिलियन यानी 60 लाख मौतें हो जाती है।
चुनौती बहुत बडी है, क्योकि करीब 26 मिलियन यानी 2.60 करोड लोग स्ट्रोक के कारण अपंगता का जीवन जी रहे हैं और अपने दैनिक कार्यों के लिए भी दूसरो पर निर्भर हैं। छह मे से एक व्यक्ति को जीवन में एक बार स्ट्रोक जरूर आता है। स्ट्रोक के लक्षण अचानक सामने आते हैं और यदि इनकी सही पहचान हो जाए और समय पर उपचार मिल जाए तो मरीज को काफी लाभ हो सकता है।
रोग की समय पर पहचान से बहुत बडा फर्क पड़ सकता है और उपचार के दौरान अविश्वसनीय परिणाम दिख सकते है। हम लोगों को स्ट्रोक के लक्षण पहचानने के लिए जागरूक करने की आवश्यकता है। स्ट्रोक के लक्षण अंग्रेजी में फास्ट के रूप में पहचाने जा सकते है। यहां एफ से मतलब है फेस ड्रॉपिंग यानी चेहरे की मांसपेशियां लटकी हुई दिखना, ए का अर्थ है आर्म वीकनेस यानी हाथो में कमजोरी महसूस होना, एस का अर्थ है स्पीच स्लर्ड यानी आवाज में अस्पष्टता और टी का अर्थ है टाइम टू कॉल एन एम्बुलेंस यानी एम्बुलेंस बुलाने का समय हो गया है। कुछ लोगों को बोधात्मक समस्याएं आती है यानी समझने में दिक्कत होती है। जैसे बोलने में परेशानी, समझने में परेशानी, भ्रमित रहना, अंधापन, तेज सिरदर्द आदि भी स्ट्रोक के लक्षण है। यदि मरीज का इलाज नहीं होता है तो मरीज हर मिनिट में 1.9 मिलियन न्यूरोन खो देता है।
स्ट्रोक के उपचार का सबसे सही समय पहले छह घंटे होते है और इस दौरान इलाज मिलना ही सबसे बडी सफलता है। स्ट्रोक की सबसे ज्यादा आशंका 55-65 साल की उम्र में होती है। अनुवांशिक कारणों के अलावा उच्च रक्तचाप, मधुमेह, उच्च कलोस्ट्रोल, धूम्रपान, व्यायाम न करना और भोजन की अस्वास्थ्यकर आदतें इसके प्रमुख कारण है। स्ट्रोक की सबसे ज्यादा जोखिम उच्च रक्तचाप में रहती है। जब आपकी धमनियांें में रक्त बहुत तेजी से बहता है तो यह धमनियों की दीवारों को कमजोर कर सकता है या तोड सकता है और यही स्ट्रोक का कारण बनता है। भोजन की अस्वास्थ्यकर आदतें और शारीरिक व्यायाम न करने से सीवीडी, मधुमेह और कलोस्ट्रोल बढ़ने की आशंका रहती है। इससे धमनियों में रूकावट आती है और इसके चलते दिमाग तक खून पहुंचना रूक सकता है। उम्र बढने के साथ स्ट्रोक की जोखिम बढ जाती है।
पुरूषों में महिलाओं की तुलना में कम उम्र में स्ट्रोक आ सकता है। जो महिलाएं गर्भ रोकने की दवाइयां लेती है, उनमें स्ट्रोक की आशंका थोड़ी ज्यादा रहती है। गर्भकाल के दौरान भी महिलाओं में जोखिम ज्यादा होता है, क्योंकि रक्तचाप बढ़ जाता है और इससे दिल पर जोर पड़ता है। इसके अलावा माइग्रेन के कारण भी महिलाओं में स्ट्रोक की आशंका तीन गुना तक बढ जाती है। गम्भीर स्ट्रोक तब आता है जब दिमाग तक खून की आपूर्ति की रूक जाती है। इससे कुछ दिमाग की कुछ कोशिकाएं तुरंत मर जाती है, लेकिन अगले कुछ घंटों में यदि खून की आपूर्ति बहाल कर दी जाए तो दिमाग के कुछ हिस्से को बचाया जा सकता है। यदि स्ट्रोक के छह घंटे में उपचार के लिए लाया जाता है तो इन आधुनिक तकनीकों से बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते है। तकनीकी प्रगति और विशेषज्ञता के कारण अब दिमाग तक खून पहुंचाने वाली नसों को बिना किसी ज्यादा चीरफाड के आसानी से ठीक किया जा सकता है। आधुनिक बाइप्लेन डीएसए और हाई रेज्येल्यूशन स्क्रीन विद सीटी और एम आर की मदद से स्ट्रोक का इलाज और भी आसान हो गया हैं।