नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान सरकार की अन्य पिछडा वर्ग आरक्षण मामले की उस याचिका को स्वीकार कर लिया है जिसमें राजस्थान उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गयी है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति वाई वी चंद्रचूड और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की खंडपीठ ने आज इस मामले पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया है कि जब तक शीर्ष न्यायालय ओबीसी आरक्षण मामले में उसके समक्ष दायर याचिका पर निर्णय नहीं देता तब तक राज्य सरकार आरक्षण के 50 प्रतिशत आंकडे को पार नहीं करेगी।
राजस्थान सरकार की तरफ से दायर याचिका में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए कहा गया है कि न्यायालय विधायी प्रक्रिया पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगा सकती। राज्य सरकार ने अपने निर्णय में गुर्जर समेत पांच जातियों को ओबीसी श्रेणी में शामिल करते हुए इस वर्ग की आरक्षण सीमा 21 से बढ़ाकर 26 प्रतिशत कर दिया है। इस निर्णय के कारण कुल आरक्षण की सीमा 50 से बढ़कर 54 प्रतिशत हो गयी जबकि शीर्ष न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि आरक्षण की सीमा किसी भी स्थिति में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं की जा सकती है।
राज्य सरकार के आरक्षण की सीमा बढ़ाये जाने को लेकर 25 अक्टूबर को विधानसभा में एक विधेयक पारित किया था। राजस्थान उच्च न्यायालय ने इसको चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय के निर्णय को आधार मानते हुए सरकार के ओबीसी आरक्षण विधेयक पर रोक लगा दी थी।
राजस्थान में गुर्जरों को तीन बार पांच प्रतिशत का आरक्षण राज्य सरकार ने मंजूर किया है लेकिन न्यायालय इसे तीनों बार खारिज कर दिया। आरक्षण को लेकर राज्य में पिछले कई वर्षों से आंदोलन होते रहे हैं।