6 साल के लड़के ने बचाई एचआईवी संक्रमित बड़े भाई की जान

hivबेंगलुरु,  कुछ महीने पहले आकाश(बदला हुआ नाम) थैलेसीमिया से पीड़ित था, इस बीमारी के तहत उसे तीन से चार सप्ताह में खून चढ़ाने की जरूरत होती थी। लेकिन आकाश के माता-पिता पर दोहरी मार तब पड़ी जब उन्हें पता चला कि खून चढ़ाने की प्रक्रिया के दौरान उनके 10 साले के बेटे को एचआईवी वायरस ग्रस्त खून चढ़ा दिया गया था। जिसके बाद आकाश को पांच महीने पहले अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (बीएमटी) कराना पड़ा था। बता दें इस प्रत्यारोपण के लिए आकाश के छह साल के भाई ने उसे अपना बोन मेरो दिया था। एचआईवी से संक्रमित एक मरीज पर अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण करना मजूमदार शॉ कैंसर सेंटर के डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ के 100 के करीब डॉक्टरों की टीम के लिए एक बड़ी चुनौती थी। डॉक्टरों के मुताबिक ऐसी स्थिति में ऑपरेशन बहुत जोखिम भरा होता है। ऑपरेशन सफल रहा और पिछले पांच महीने से आकाश के अंदर एचआईवी के कोई लक्षण दिखाई नहीं दिए है। आकाश के पिता ने बताया कि जब हमें पता चला कि एचआईवी का घातक वायरस आकाश के शरीर में पहुंच गया था तो हम टूट चुके थे। हमने इलाज के लिए कई प्रत्यारोपण केंद्रों से संपर्क किया लेकिन इलाज तो दूर कोई उसे छूना नहीं चाहता था। अंत में हमने किस्मत आजमाने के लिए बेंगलुरू आने का फैसला किया। मजूमदार शॉ कैंसर सेंटर, नारायण हेल्थ सिटी में वरिष्ठ सलाहकार डॉ सुनील भट्ट ने बताया कि जब आकाश हमारे यहां आया तो उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत कमजोर थी और संक्रमण ज्यादा था। मैंने महसूस किया कि एचआईवी संक्रमण से पीड़ित के प्रत्यारोपण के दौरान काफी दिक्कते सामने आ सकती हैं। यही कारण है कि हमारे लिए ये सबसे बड़ी चुनौती थी।डॉक्टरों के मुताबिक ऐसा प्रत्यारोपण विश्व में दूसरी बार और भारत में पहली बार हुआ है। एचआईवी के सफल इलाज के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह देखते हुए कि प्रत्यारोपण सिर्फ पांच महीने पहले हुआ है, ऐसा कह देना जल्दबाजी होगा। लेकिन अगर आकाश के शरीर में अगले एक साल तक एचआईवी के लक्षण नहीं दिखते है तो इस प्रक्रिया को एचआईवी के लिए एक संभावित इलाज के रूप में माना जा सकता है।

Related Articles

Back to top button