नयी दिल्ली, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व बाघ दिवस की पूर्व संध्या पर कहा है कि भारत में बाघों के संरक्षण के लिए इस समय अभूतपूर्व प्रयास चल रहे हैं और देश में प्रति वर्ष इस वन्य प्राणी की संख्या बढ़ रही है।
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को अपने मासिक रेडियो संबोधन- मन की बात में कहा कि विश्व में 70 प्रतिशत बाघ भारत में पाए जाते हैं और और यह प्राणी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है और देश में वनों के आस पास के गावों में लोगों को पता रहता है कि बाघों के साथ ताल मेल बिठा कर कैसे रहना है। उन्होंने इस संदर्भ में रणथम्भौर (राजस्थान), महाराष्ट्र का तादोबा-अंघेरीबाघ अभयारण्य,आंध्र प्रदेश में नल्लामलाई की पहाड़ियों पर रहने वाली ‘चेन्चू’ जनजाति और पीलीभीत में चल रहे ‘बाघ मित्र कार्यक्रम’ का विशेष रूप से उल्लेख किया।
प्रधानमंत्री ने कहा, “कल दुनिया भर में बाघ दिवस मनाया जाएगा। भारत में तो ‘बाघ’, हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है। हम सब बाघों से जुड़े किस्से–कहानियाँ सुनते हुए ही बड़े हुए हैं। जंगल के आसपास के गाँव में तो हर किसी को पता होता है कि बाघ के साथ तालमेल बिठाकर कैसे रहना है। हमारे देश में ऐसे कई गाँव है, जहां इंसान और बाघ के बीच कभी टकराव की स्थिति नहीं आती।”
प्रधानमंत्री ने कहा, “मुझे खुशी है कि जन-भागीदारी बाघों के संरक्षण में बहुत काम आ रही है। ऐसे प्रयासों की वजह से ही भारत में बाघों की आबादी हर साल बढ़ रही है। आपको ये जानकर खुशी और गर्व का अनुभव होगा कि दुनियाभर में जितने बाघ हैं ,उनमें से 70 प्रतिशत बाघ हमारे देश में हैं और देश के अलग-अलग हिस्सों में कई बाघ अभयारण्य हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत में जहाँ भी बाघ और मानव में टकराव की स्थिति आती है, वहाँ बाघों के संरक्षण के लिए अभूतपूर्व प्रयास हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस काम में जन भागीदारी प्रोत्साहित की जाती है और राजस्थान के रणथंभौर जिले में “कुल्हाड़ी बंद पंचायत” अभियान इसका एक नमूना है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि रणथंभौर का “कुल्हाड़ी बंद पंचायत” अभियान बहुत दिलचस्प है। स्थानीय समुदायों ने स्वयं इस बात की शपथ ली है कि जंगल में कुल्हाड़ी के साथ नहीं जाएंगे और पेड़ नहीं काटेंगे। इस एक फैसले से यहाँ के जंगल, एक बार फिर से हरे-भरे हो रहे हैं, और बाघों के लिए बेहतर वातावरण तैयार हो रहा है।
प्रधानमंत्री मोदी ने महाराष्ट्र के तादोबा-अंघेरीबाघ अभयारण्य के आस पास के समुदायों, विशेषकर गोंड और माना जनजाति के लोगों द्वारा ईको-टूरिज्म (नैसर्गिक पर्यटन) के कार्य की ओर तेजी से प्रगति का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा कि इससे वहां के समुदायों की जंगल पर अपनी निर्भरता को कम हुई है और बाघों को विचरण का अधिक मौका मिला है।
उन्होंने इसी तरह आंध्र प्रदेश में नल्लामलाई की पहाड़ियों पर रहने वाली ‘चेन्चू’ जनजाति के प्रयास का भी उल्लेख किया जो ‘टाइगर ट्रैकर’ (बाघ पर आंख रखने वाले) के तौर पर जंगल में वन्य जीवों की गतिविधियों की हर जानकारी जमा की है और वे क्षेत्र में, अवैध गतिविधियों की निगरानी भी करते रहे हैं।
इसी तरह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में चल रहा ‘बाघ मित्र कार्यक्रम’ भी बहुत चर्चा में है। इसके तहत स्थानीय लोगों को ‘बाघ मित्र’ के रूप में काम करने का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि बाघों और इंसानों के बीच टकराव की स्थिति ना बने। देश के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह के कई प्रयास जारी हैं।