जिले के सुकरौली ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय सिहुलिया की प्रधानाध्यापिका ऋचा सिंह बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी माताओं को सशक्त एवं बालिकाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। वह अब तक 65 विद्यार्थियों की माताओं को साक्षर बना चुकी हैं। तीन साल पूर्व बंद विद्यालय में तैनाती के बाद ऋचा की कड़ी मेहनत की। उनकी बदौलत स्कूल अंग्रेजी माध्यम के लिए चयनित हुआ है। उनके जज्बे एवं नवाचार शिक्षा प्रणाली की चहुंओर सराहना हो रही है।
विकास खंड का प्राथमिक विद्यालय सिहुलिया जनवरी 2016 से पहले शिक्षक के अभाव में करीब चार महीने बंद था। दो फरवरी 2016 को स्कूल में शिक्षिका के रूप में ऋचा सिंह एवं रेनू की तैनाती हुई। स्कूल खुला तो दो से तीन बच्चे आने शुरू हुए। ऋचा ने कठिन मेहनत और कुशल व्यवहार की बदौलत लोगों को समझाकर बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित किया। स्कूल में पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार होने पर देख धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़कर 185 तक पहुंच गई।
इनमें 113 छात्राएं और 72 छात्र हैं। शिक्षिका की मेहनत और नवाचार गतिविधियों से शिक्षण कार्य होने से स्कूल को अंग्रेजी माध्यम के लिए चयनित किया गया है। शिक्षिका बच्चों को पढ़ाने के साथ उनकी माताओं को सशक्त बनाने में जुटी हुई है। स्कूली बच्चों की 71 माताएं महीने में दो बार होने वाली शिक्षक-अभिभावक गोष्ठी में शामिल होती हैं। इनमें 65 महिलाएं साक्षर हो चुकी हैं। गोष्ठी में 25 से 30 पुरुष अभिभावक शामिल होते हैं। महिला अभिभावकों में डेढ़ दर्जन बच्चों की बुजुर्ग दादियां भी शामिल होती हैं।
बच्चों को पढ़ाने के साथ उनके माताओं को सशक्त बनाने में शिक्षिका कोई कोर कसर नहीं छोड़ती है। स्कूल में जागरूक महिलाओं को ‘सुपर मॉम’ की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। स्कूल में चार सखी सहेली ग्रुप बनाए गए हैं। इनमें एक ग्रुप में तीन-तीन महिलाओं को शामिल किया गया है। सीमा, किरन, रेखा, ललिता, बबिता, शीला, बरसाती, ठगनी, रेनू आदि महिलाएं गांव की महिलाओं को शिक्षा के प्रति जागरूक करती हैं। बालिकाओं को विशेष परिस्थितियों से निपटने की सीख दी जाती है।
शिक्षिका ने बताया कि सखी सहेली ग्रुप के माध्यम से महिलाओं को मंच प्रदान किया जाता है। इसमें महिलाएं कविता, कहानी सुनाने के साथ उन्हें नई सोच, विचारधाराओं के साथ सरकारी योजनाओं और दिनचर्या से संबंधित जानकारियों व रोजगारपरक ज्ञान दिया जाता है। इससे कि वह आत्मनिर्भर व सशक्त बन सके।
उन्होने बताया कि स्कूल में नामांकन बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाओं का शत-प्रतिशत लाभ पहुंचाने के अलावा अपने पास से बच्चों को ठंडक से बचाने के लिए चप्पल, स्वेटर, घड़ी, स्लेट, चाक, पेंसिल, चार्ट और कॉपी के उपहार के तौर पर देकर प्रोत्साहित किया गया।
बीईओ विजय गुप्ता का कहना है कि नवाचार शिक्षा का अनूठा उदाहरण है। बच्चों को पढाने के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने में शिक्षिका जुटी हुई है। शिक्षिका का प्रयास सराहनीय है। उससे अन्य शिक्षकों को सीख लेनी चाहिए। मॉडल स्कूल के रूप विकसित किया जाएगा।