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रेल परिवहन सड़क परिवहन से बहुत महंगा, रेलकर्मियों के रवैये से ग्राहक असहज

नयी दिल्ली, रेल परिवहन सड़क परिवहन से बहुत महंगा, रेलकर्मियों के रवैये से ग्राहक असहज हैं। रेलवे मालवहन के क्षेत्र में ऑटामोबाइल्स इस्पात समेत विभिन्न मदों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की जीतोड़ कोशिश कर रही हो लेकिन रेलकर्मियों के गैर पेशेवराना रवैये से उसे ग्राहकों के सामने असहज स्थित का सामना करना पड़ रहा है।

रेलवे ने वैगन के नये डिज़ाइन के माध्यम से और नयी मदों में मालवहन बढ़ाने के लिए आयोजित विचार मंथन की खातिर एक सम्मेलन आयोजित किया था जिसके पहले सत्र में अधिकारियों ने डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर और अन्य मार्गों पर कारों के सुलभ परिवहन के बारे में वैगन के नये डिजायनों के बारे में चर्चा की।

इसी सत्र में देश की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी मारुति सुज़ुकी इंडिया लिमिटेड के उपाध्यक्ष आर एस कपूर ने अपने संबोधन में रेलकर्मियों के गैर पेशेवराना रवैये का खुलासा किया तो रेलवे बोर्ड में सदस्य रोलिंग स्टॉक राजेश अग्रवाल सहित वरिष्ठ रेल अधिकारी कुछ बोल नहीं सके। हालांकि उन्होंने श्री कपूर की शिकायतों के समाधान का भरोसा अवश्य दिलाया।

श्री कपूर ने बताया कि वह बीते छह साल से रेलवे के माध्यम से कारों का परिवहन कर रहे हैं लेकिन वर्तमान दशाओं में रेल परिवहन उन्हें सड़क परिवहन से बहुत महंगा पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि गैरप्रदूषण कारी परिवहन माध्यम होने के नाते मारुति सुज़ुकी ने रेलवे को कार परिवहन के लिए चुना है और बीते साल एक लाख 55 हजार कारें रेलवे के माध्यम से भेजी हैं। मारुति सुज़ुकी के पास कार परिवहन के लिए विशेष वैगन वाले कुछ रैक हैं।

उन्होंने कहा कि छह सालों में छह लाख से अधिक कारों को ट्रेन के जरिये देश के विभिन्न स्थानों पर पहुंचाया गया है। इससे कुछ 2800 टन कॉर्बन डॉई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम हुआ और 80 हजार ट्रकों की आवाजाही बची। उन्होंने कहा कि कंपनी चाहती है कि कुल कारों का करीब 30 प्रतिशत ट्रेन के माध्यम से हो लेकिन कई चुनौतियां हैं। वैगन की डिज़ायन गाड़ियाें की ग्राउंड क्लीयरेंस के हिसाब से नहीं है। वैगन की आयु 30 से 35 साल बतायी गयी है लेकिन छह साल आते आते रैकों की छतों में छेद हो गये हैं। उनसे पानी टपकता है और गाड़ियां खराब हो जातीं हैं। अगस्त से उसे जगाधरी के कारखाने में मरम्मत के लिए भेजा गया है। अभी तक लौटा नहीं है।

श्री कपूर ने कहा कि मानेसर से बेंगलुरु के लिए रेलवे का वादा है कि 72 घंटे में रैक को पहुंचा देेंगे लेकिन पहुंचता 144 घंटे में है। गाड़ियों को दो डेक में ऐसे रखा जाता है कि ड्राइवर को एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। रास्ते में गाड़ियों के शीशे तोड़ कर स्टीरियोए स्टेपनी आदि चुराये जाने और गाड़ियों में खरोंच या डेंट लगने की घटनाएं भी सामने आतीं हैं जिससे कंपनी को भारी नुकसान हो रहा है लेकिन रेलवे की ओर से उसका कोई हर्जाना भी नहीं मिलता है।

श्री कपूर के इतना कहने पर हॉल में बैठे अधिकारियों को सांप सूंघ गया। श्री अग्रवाल भी कुछ नहीं बोल पाये। बाद में श्री अग्रवाल ने कहा कि मारुति सुज़ुकी की समस्याओं का समाधान किया जाएगा। इससे पहले रेलवे अधिकारियों ने पश्चिमी डीएफसी के लिए 6820 मिलीमीटर वाले तीन डेक वाले ऊंचे वैगन की डिजायनए पांरपरिक 4305 मिलीमीटर की जगह नये 4370 मिलीमीटर वाले वैगन की डिजायन के बारे में जानकारी दी। बाद के सत्रों में सीमेंटए फ्लाईऐशए विशेष वस्तुओं की ढुलाई के लिए भी वैगन की नयी डिज़ायनों के बारे में चर्चा हुई।