नयी दिल्ली, कचरा पैदा होने और उसके निस्तारण में बड़ा अंतर है जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है और इससे लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। यह बात राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने कही। साथ ही उसने निर्देश दिया कि दस लाख से अधिक आबादी वाले इलाकों में इसके निस्तारण में विफल रहने पर स्थानीय निकायों को प्रति महीने दस लाख रुपये जुर्माना भरना पड़ेगा।
हरित अधिकरण ने यह भी निर्देश दिया कि सभी राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों के मुख्य सचिवों के कार्यालयों में एक महीने के अंदर ‘‘पर्यावरण निगरानी प्रकोष्ठ’’ का गठन किया जा सकता है। एनजीटी अध्यक्ष आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने कहा कि ठोस और तरल अपशिष्ट के मुद्दे को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘कचरा पैदा होने और उसे इकट्ठा करने के बाद उसके निस्तारण की प्रक्रिया नियमित आधार पर नहीं हो रही है। कोई भी व्यक्ति जो रेलगाड़ी से यात्रा करता है, वह बिखरे कूड़े और बहते नाले सामान्य तौर पर देख सकता है। संतोषजनक सीवेज प्रबंधन भी नहीं हो रहा। इन असंतोषजनक कार्यों का जल्द निदान होना चाहिए और उच्च स्तर पर समयबद्ध तरीके से होना चाहिए। जवाबदेही तय की जानी चाहिए।’’