नयी दिल्ली, निजी क्षेत्र के चौथे बड़े बैंक येस बैंक के संकट में फँसने पर विपक्ष – विशेषकर कांग्रेस – द्वारा किये गये हमलों पर तीखी प्रतिक्रया व्यक्त करते हुये वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि ‘कुशल डॉक्टरों’ के कार्यकाल में बहुत अधिक जोखिम वाली कंपनियों को ऋण दिये गये और बैंकों की स्थिति बहुत खराब हुई।
वित्त मंत्री ने कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार पर निशाना साधते हुये कहा कि जुलाई 2004 में डूबने की कगार पर पहुँच चुके ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का विलय सार्वजनिक क्षेत्र के ओरियंटल बैंक ऑफ कामर्स में किया गया था। इसके बाद वर्ष 2006 में यूनाइटेड वेस्टर्न बैंक का विलय आईडीबीआई में किया और गणेश बैंक ऑफ कुरूदंवाड का निजी क्षेत्र के फेडरल बैंक में विलय किया गया।
उन्होंने कहा कि ‘सक्षम डॉक्टरों’ के इस उपचार से आईडीबीआई बैंक और ओबीसी की स्थिति खराब हुई। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से पहले येस बैंक ने अधिक जोखिम वाली कंपनियों जैसे अनिल अंबानी ग्रुप, एस्सेल ग्रुप, डीएचएफएल, आईएलएफएस और वोडाफोन को ऋण दिया था।
वित्त मंत्री ने भरोसा दिलाया कि येस बैंक के जर्माकर्ताओं की पूरी राशि सुरक्षित है और निकासी की सीमा तय करना अस्थायी कदम है। मोदी सरकार ने जमाकर्ताओं के हितों को ध्यान में रखते हुये ही बैंकों में जमा राशि पर गारंटी को एक लाख रुपये से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये कर दिया है।
इससे पहले कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री पर येस बैंक को लेकर सीधा हमला करते हुए आज कहा था कि बैंक डूब रहे हैं और लोगों को अपना पैसा निकालने मेंं दिक्कत हो रही है लेकिन यह स्थिति क्यों पैदा हो रही है इसकी सरकार को कोई जानकारी नहीं है। श्री मोदी पहले प्रधानमंत्री और श्रीमती सीतारमण पहली वित्त मंत्री हैं जो देश की अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर एकदम अनजान हैं और उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा। मोदी सरकार के पास किसी तरह का वित्तीय प्रबंधन नहीं है। प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री को यह पता ही नहीं है कि अर्थव्यवस्था कहाँ जा रही है।
कांग्रेस के शासनकाल में वित्त मंत्री रहे पी. चिदंबरम ने येस बैंक संकट पर कहा कि वित्तीय संस्थानों के सुचारू संचालन की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की क्षमता बेनकाब हो गई है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, “भाजपा छह वर्षों से सत्ता में है। वित्तीय संस्थानों के संचालन एवं विनियमन की उसकी क्षमता बेनकाब हो गई है। पहले पीएमसी बैंक के मामले में ऐसा हुआ और अब येस बैंक के मामले में। क्या सरकार को बिल्कुल भी चिंता है? क्या वह अपनी जिम्मेदारी से भाग सकती है? क्या कोई तीसरा बैंक भी इस कतार में है?”