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दिवालिया कानून एक तरह का स्वच्छता अभियान, 3,600 कंपनियां दायरे में

नयी दिल्ली, आईबीबीआई प्रमुख एम एस साहू ने कहा कि दिवाला कानून एनपीए यानी फंसे हुए कर्ज की सफाई के लिए एक तरह का स्वच्छता अभियान है और साथ ही यह कंपनियों को सक्षम एवं भरोसेमंद लोगों के हाथ में सौंपने का एक जरिया है। साहू ने कहा कि दिवाला कानून अभी धीरे धीरे और बेहतर हा रहा है। दिवाला एवं दिवालियापन संहिता के तहत अब तक लगभग 3,600 कंपनियों को लाया जा चुका है।

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साहू ने यह स्वीकार किया कि संहिता अभी भी विकसित हो रही है और कहा कि अधिकारियों को सामने आ रहीं नई चुनौतियों के बारे में पता है। उन्होंने हाल में पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘जब भी कोई समस्या उन्हें मिलती है, वे उसका जल्द से जल्द समाधान करने की कोशिश करते हैं। दिवाला पेशेवर, लेनदार, एनसीएलटी, आईबीबीआई – सभी तेजी से सीख रहे हैं। उच्चतम न्यायालय तेज गति से मामलों का निपटारा कर रहा है। मेरा मानना ​​है कि सफलता का रास्ता हमेशा निर्माणाधीन होता है।’

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भारतीय दिवाला एवं रिण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) इस संहिता को लागू कराने वाली प्रमुख संस्था है। राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) से मंजूरी के बाद ही संहिता के तहत कोई मामला उठाया जाता है। इस संहिता के 2016 में लागू के बाद से मिले फायदों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘‘यह एनपीए (गैर निष्पादित आस्तियों) की सफाई करने और कंपनियों को सक्षम तथा विश्वसनीय हाथों में सौंपने के लिए तरह का स्वछता अभियान है।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘यह प्रत्येक कंपनी पर समान रूप से कानून के शासन की पुष्टि करता है, उसके आकार या उसके पीछे के लोगों की पहुंच और प्रभाव से प्रभावित हुए बिना इसमें काम हा रहा है। कर्ज चुकाना अब कोई विकल्प नहीं है, बल्कि एक दायित्व है।’’ साहू ने कहा कि जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि आईबीसी के साथ ही कर्ज न चुकाने वालों के सुख के दिन अब बीत गए हैं।

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