नई दिल्ली, केजरीवाल सरकार को 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के मामले में बड़ा झटका लगा है. दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार द्वारा 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति को रद्द कर दिया. दिल्ली सरकार ने 13 मार्च 2015 के अपने आदेश के जरिए पार्टी के 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया था. जिसे अदालत में चुनौती दी गई थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा की दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति उपराज्यपाल की मंजूरी के बिना की इसलिए उन्हें असंवैधानिक मानकर रद्द किया जाता है. कोर्ट ने कहा कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है. कोर्ट ने कहा आर्टिकल 239AA के तहत इस तरह की नियुक्ति करने के लिए उपराज्यपाल की मंजूरी लेना जरुरी है.
हाई कोर्ट ने कहा कि पिछले महीने हमने उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के अधिकारों को लेकर अपना फैसला सुना दिया है. उसके आधार पर ये नियुक्ति अवैध हैं. कोर्ट ने इस मामले में केजरीवाल सरकार के मार्च 2015 के उस नोटिफिकेशन को ही रद्द कर दिया जिसमें 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति की गई थी.
दिल्ली सरकार ने भी माना कि इस मामले में उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली गई थी. सरकार ने ये भी कहा कि 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति मार्च 2015 में की थी और हाई कोर्ट का आदेश पिछले महीने आया है. ये याचिका राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविंदर कुमार ने हाई कोर्ट में पिछले साल लगाई थी और कहा था कि 10 फीसदी से ज्यादा कोई भी राज्य सरकार संसदीय सचिवों की नियुक्ति नहीं कर सकती. यानि 70 विधायकों मे से सिर्फ सात को ही पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के तौर पर नियुक्त किया जा सकता है. ऐसे में इनकी नियुक्ति को रद्द किया जाए. चुनाव आयोग के पास भी अभी ये मामला विचाराधीन है.
हाई कोर्ट ने इस मामले में ये भी कहा कि केंद्र सरकार उपराज्यपाल के माध्यम से ये तय कर सकती है कि इस मामले में क्या कार्रवाई की जा सकती है. अगर उपराज्यपाल चाहें तो 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर अब तक खर्च हुए सरकारी पैसे की रिकवरी कर सकते हैं. साथ ही उनकी मंजूरी न लेने को लेकर भी कोई कारवाई की जा सकती है. लेकिन कोर्ट इसका अधिकार उपराज्यपाल को दिया है.