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जनहित याचिकाओं को लेकर, ये है केंद्रीय कानून मंत्री के विचार ?

नयी दिल्ली, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कोरोना वायरस महामारी की इस कठिन घड़ी में अतिउत्साह में जनहित याचिकाएं दायर किये जाने की घटनाओं को निरुत्साहित करने की आवश्यकता जतायी है।
श्री प्रसाद ने रविवार को एटर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल के नेतृत्व में सरकार के विधि अधिकारियों से वीडियोकांफ्रेंसिंग के जरिये की गयी वर्चुअल बैठक के दौरान कहा कि पूरी दुनिया चुनौतीपूर्ण समय से गुजर रही है और ऐसी गंभीर महामारी मानव के समक्ष जटिल एवं संवेदनशील प्रकृति की चुनौतियां खड़ी करती है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने भारत में कोरोना की स्थितियों से निपटने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर हरसंभव प्रयास किये हैं और केंद्र एवं राज्यों के निर्णय लेने की प्रक्रिया पर भरोसा किये जाने की जरूरत है।
एटर्नी जनरल ने कानून मंत्री के इस मंतव्य का समर्थन किया, साथ ही यह भी कहा कि सरकार के प्रयासों को कोर्ट द्वारा सराहने की आवश्यकता भी है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उच्चतम न्यायालय में दायर होने वाली याचिकाओं की प्रकृति का विस्तार से ब्योरा देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने कोरोना को लेकर सरकार के दिशानिर्देशों और उठाये गये कदमों की कई मौकों पर सराहना की है।
इस पर श्री प्रसाद ने कहा कि चुनौती की इस घड़ी में अतिउत्साह में जनहित याचिकाएं दायर किये जाने को निरुत्साहित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी को मुकदमे दायर करने से रोका नहीं जा सकता, लेकिन इस प्रकार के हस्तक्षेप का प्रभावी तरीके से जवाब दिया जाना चाहिए।
इस अवसर पर न्याय विभाग के सचिव ने देश में ई-कोर्ट और उससे संबंधित अन्य गतिविधियों की जानकारी केंद्रीय मंत्री को दी। एटर्नी जनरल सहित विभिन्न विधि अधिकारियों ने ई-कोर्ट को प्रणाली को और मजबूत करने की आवश्यकता पर बल दिया।
कोरोना काल में विधि एवं न्याय मंत्री की ओर से विधि अधिकारियों के साथ यह पहली वर्चुअल मीटिंग थी।