नई दिल्ली , प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क निर्माण परियोजना में सड़क बनाने के लिए नारियल रेशा और अवशेषों का प्रयोग किया जाएगा जिससे नारियल किसानों को अतिरिक्त आमदनी होगी और स्थानीय संसाधनों का इस्तेमाल होगा.
सूक्ष्म , लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय ने बताया कि इस निर्णय से नारियल रेशा उद्योग को विशेषकर कोविड महामारी के दौरान बढ़ावा मिलेगा।
नारियल रेशा प्राकृतिक, मजबूत, अत्यधिक टिकाऊ, टूट-फूट, मोड़ एवं नमी प्रतिरोधी है तथा किसी भी सूक्ष्मजीव के हमले से मुक्त है. इसे ग्रामीण सड़क निर्माण के लिए एक अच्छी सामग्री के रूप में स्वीकार किया गया है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण आधारभूत संरचना विकास एजेंसी ने कहा है कि पीएमजीएसवाई- तृतीय के तहत ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए नारियल रेशा का उपयोग किया जाएगा।
केन्द्रीय एमएसएमई और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है क्योंकि हम अब नारियल रेशा और अवशेष का सड़क निर्माण में उपयोग कर सकते हैं। इस निर्णय से नारियल रेशा उद्योग को विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के इस कठिन समय में बढ़ावा मिलेगा।”
सड़क निर्माण के लिए पीएमजीएसवाई की नई प्रौद्योगिकी दिशानिर्देशों के अनुसार सडकों की कुल लम्बाई के 15 प्रतिशत में नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके निर्माण किया जाना है। इनमें से 5 प्रतिशत सड़को के बनाने में नारियल रेशा का इस्तेमाल होगा.
इससे आंध्र प्रदेश में 164 किलोमीटर, गुजरात में 151 किलोमीटर, केरल में 71 किलोमीटर, महाराष्ट्र में 328 किलोमीटर, ओडिशा में 470 किलोमीटर, तमिलनाडु में 369 किलोमीटर और तेलंगाना में 121 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया जाएगा। इस प्रकार सात राज्यों में 1674 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया जाएगा, जिसके लिए अनुमानित 70 करोड़ रुपये के नारियल रेशा की जरूरत है।