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यूपी मे बिजली के निजीकरण के विरोध में, बिजली कर्मचारियों ने दी बड़ी धमकी

लखनऊ 25 जुलाई (वार्ता) उत्तर प्रदेश में बिजली कर्मचारियों ने चेतावनी दी है कि सरकार ऊर्जा निगमों की किसी भी इकाई के निजीकरण करने की कोशिश न करे वरना आंदोलन किया जायेगा।

विद्युत् कर्मचारी सँयुक्त संघर्ष समिति ने शनिवार को एक बैठक कर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द करने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपील की। उन्होने कहा कि कोरोना महामारी के बीच निर्बाध सुचारु बिजली आपूर्ति बनाये रखने वाले प्रदेश के ऊर्जा निगमों की किसी भी इकाई का निजीकरण स्वीकार्य नहीं होगा। अगर निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई तो आन्दोलन किया जायेगा।

समिति ने मुख्यमंत्री अपील की कि पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण का प्रस्ताव रद्द किया जाये और ऊर्जा निगमों के बिजली कर्मचारियों , जूनियर इंजीनियरों व् अभियंताओं को विश्वास में लेकर बिजली उत्पादन , पारेषण और वितरण में चल रहे सुधार के कार्यक्रम सार्वजनिक क्षेत्र में ही जारी रखे जाये जिससे आम जनता को सस्ती और गुणवत्ता परक बिजली मिल सके।

बैठक में सरकार को याद दिलाया गया कि पांच अप्रैल 2018 को ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा की उपस्थिति में पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन ने संघर्ष समिति से लिखित समझौता किया है कि प्रदेश में ऊर्जा क्षेत्र में कोई निजीकरण नहीं किया जाएगा ऐसे में अब निजीकरण की बात करना समझौते का खुला उल्लंघन है।

संघर्ष समिति ने बयान जारी कर कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ऊर्जा मंत्री श्रीकान्त शर्मा ने महामारी के दौर में बिजली कर्मियों द्वारा निर्बाध बिजली आपूर्ति बनाये रखने की बार बार प्रशंसा की लेकिन 23 जुलाई को केंद्रीय विद्युत् मंत्री के साथ हुई बातचीत में पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव से बिजली कर्मियों को भारी निराशा हुई है और उनमे आक्रोश व्याप्त है। बिजली कर्मी ऊर्जा निगमों के सबसे प्रमुख स्टेक होल्डर हैं ऐसे में बिजली कर्मियों को विस्वास में लिए बिना नौकरशाहों के प्रस्ताव पर निजीकरण करना सर्वथा गलत और टकराव बढ़ाने वाला कदम होगा।

संघर्ष समिति ने अपील की है कि प्रबंधन द्वारा रखे गए निजीकरण के ऐसे किसी भी प्रस्ताव को सरकार व्यापक जनहित में पूरी तरह खारिज कर दें। नौकरशाही के दबाव में किया गया बिजली बोर्ड का विघटन और निगमीकरण पूरी तरह विफल रहा है। वर्ष 2000 में बिजली बोर्ड के विघटन के समय मात्र 77 करोड़ रु का सालाना घाटा था जो अब 95000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।

उन्होने कहा कि निजीकरण का एक और प्रयोग करने के पहले 27 साल के ग्रेटर नोएडा के निजीकरण और 10 साल के आगरा के फ्रेंचाइजीकरण की समीक्षा किया जाना जरूरी है। नोएडा पॉवर कंपनी और टोरेन्ट कंपनी करार का लगातार उल्लंघन कर रही है जिससे पॉवर कार्पोरेशन को अरबों रुपये की चपत लग चुकी है, ऐसे में इन करारों को रद्द करने के बजाये निजीकरण के नए प्रयोग करना बड़ा घोटाला है और आम जनता के साथ धोखा है।

बैठक में समिति के पदाधिकारी शैलेन्द्र दुबे , प्रभात सिंह , जी वी पटेल , गिरीश पांडेय , सदरुद्दीन राना , सुहेल आबिद , राजेन्द्र घिल्डियाल ,विनय शुक्ल ,डी के मिश्र , महेंद्र राय ,वी सी उपाध्याय ,शशिकांत श्रीवास्तव ,विपिन वर्मा ,कुलेन्द्र सिंह चौहान ,परशुराम ,भगवान मिश्र ,पूसे लाल ,सुनील प्रकाश पाल , शम्भू रत्न दीक्षित ,ए के श्रीवास्तव ,पी एस बाजपेई , वी के सिंह कलहंस ,जी पी सिंह मौजूद थे।