लखनऊ, लगभग 200 साल पुरानी यादो को समेटे हाई कोर्ट जो कि ऐतिहासिक लाल इमारत से कितने न्याय मूर्ती रिटायर हो गये कितने वकील अपने तजुर्बे से कठिन से कठिन न्याय दिलाने में अपना नाम कमा चुके है पर आज वहीँ पर काम करने वाले कर्मचारी व वकील यही सोच रहे है की वाकई जब याद आये तो बहुत याद आये।
न्यायमूर्तियों व वकीलो से खचाखच भरे मुख्य न्यायधीश कक्ष में लोग अचानक बिदाई के छड़ो में भावुक हो उठे। मुख्य न्यायधीश दिलीप बाबा साहब भोसले वरिष्ठ न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप शाही सहित सभी न्यायमूर्ति गणों व् वकीलो ने दोपहर में पुराने भवन को छोडने का विदाई समारोह किया गया। सोमवार को काम करते करते दोपहर तक वकील व्यस्त रहे।लगभग दोपहर 2 बजे मुख्य न्यायमूर्ति ने कहा कि कहीं खुशी हो रहा कहीं दुःख हो रहा खुशी इस बात की हो रही की हम सब अब नए बने भवन में जा रहे है और गम इस बात का हो रहा है कि लगभग 200 साल पुरानी यादो को सजोय इस भवन को छोड़ने का गम हो रहा है।
केंद्र सरकार के असिस्टेंट सालिसिटर जनरल सूर्यभानु पाण्डेय ने कहा कि वातावरण स्तब्ध है। शरीर चेतन विहीन है और आँखे नम है और वहीँ प्रदेश सरकार की ओर से महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह ने पुराने भवन का इतिहास बताते हुये कहा कि इस कोर्ट से निकले वकीलो ने मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, कैबिनेट मंत्री, महाधिवक्ता समेत अनेक उच्च पदों पर अपना परचम फहराया। अवधबार एसोसियन की ओर से भी हाई कोर्ट लखनऊ पीठ की ऐतिहासिक इमारत का गौरवसाली इतिहास बताया।
सन् 1856 मेंहाई कोर्ट लखनऊ पीठ की ऐतिहासिक इमारत की स्थापना हुई।इस परिसर में चीफ ज्यूडिशियल कमिश्नर बैठ कर जनता को न्याय देते थे। सन 1925 में चीफ कोर्ट ऑफ अवध की स्थापना हुई जिसमे एक न्याय धीश के साथ 4 सहायक न्याय धीश होते थे सन् 1948 में उच्चन्यायालय इलाहाबाद से जोड़ कर उच्च न्यायालय लखनऊ खंडपीठ का गठन हुआ।