लखनऊ, केंद्र सरकार के बाद यूपी मे भी लैटरल इंट्री से भर्ती की शुरूआत बीजेपी सरकार को भारी पड़ गई है। अखिलेश यादव द्वारा लैटरल इंट्री से भर्ती का विरोध करने पर युवाओं में खुशी की लहर दौड़ गई है। जो यूपी विधान सभा के चुनाव मे बाकी बचे तीन चरणों के मतदान पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा के लोग बिना परीक्षा कराए ही कुछ विशेष वर्ग के लोगों को आईएएस बना देते हैं। यदि इन्हें सत्ता से दूर नहीं किया गया तो पीसीएस की परीक्षा भी खत्म कर देंगे। दूसरी ओर सपा सरकार युवाओं को नौकरी देने के लिए कटिबद्ध है। ये विचार अखिलेश यादव ने गुरुवार को गंगापार के हंडिया और फूलपुर में चुनावी सभा को संबोधित करते हुये व्यक्त किये।अखिलेश यादव के लैटरल इंट्री से भर्ती के विरोध से युवाओं में खुशी की लहर दौड़ गई है।
इससे पहले केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों में संयुक्त सचिव और निदेशक जैसे प्रमुख पदों पर निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को लेट्रल एंट्री यानी सीधे नियुक्त करने का भी अखिलेश यादव ने विरोध किया था। अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि इसके जरिये भाजपा अपने लोगों को खुलेआम ला रही है, लेकिन जो लोग सालों-साल सिविल सर्विसेज की तैयारी करते हैं, उनका क्या होगा। अखिलेश यादव ने यह भी तंज कसा कि भाजपा से अब देश संभल नहीं रहा है, भाजपा सरकार अब ख़ुद को भी ठेके पर देकर विश्व भ्रमण पर निकल जाए ।
केंद्र सरकार के बाद अब उत्तर प्रदेश सरकार आईएएस की तर्ज पर पीसीएस में भी लेटरल इंट्री पर विचार कर रही है। इसमें पीसीएस अधिकारियों के 10 प्रतिशत रिक्त पदों पर अन्य विभागों से स्थानांतरण सेवा व लेटरल एंट्री के माध्यम से पेशेवरों की नियुक्ति हो सकती है। मुख्य सचिव दुर्गाशंकर मिश्र ने कार्मिक विभाग को इस संबंध में विचार कर प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। दूसरे विभागों व लेटरल इंट्री के जरिए पीसीएस के करीब 45 पदों पर नियुक्ति हो सकती है। वर्तमान में यूपी में पीसीएस काडर में 1577 पद स्वीकृत हैं । इनमें से 448 पद रिक्त हैं। अगर रिक्त पदों के सापेक्ष 10 फीसदी पद लेटरल एंट्री से भरे जाएं तो 45 लोगों की योगी सरकार नियुक्ति कर सकती है।
युवाओं द्वारा लेटरल एंट्री से भर्ती का विरोध अनायास नही है। दरअसल लेटरल एंट्री से भर्ती करना SC, ST और OBC वर्गों के लिये सबसे ज्यादा घातक है। बीजेपी सरकार का ये कदम दलितों और पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण को समाप्त करता है। इस नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रहेगी। वहीं लेटरल एंट्री ब्यूरोक्रेसी में निजीकरण की एक कोशिश भी है।
ये तमाम सवाल भ्रम नही हैं, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों में संयुक्त सचिव और निदेशक जैसे प्रमुख पदों पर निजी क्षेत्र के 30 और विशेषज्ञों को सीधे नियुक्त करने के फैसले यानि लेटरल एंट्री से भर्ती के बाद फिर से चर्चा में हैं। इससे पहले, सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों में संयुक्त सचिव के 10 पदों और उप सचिव / निदेशक के स्तर पर 40 पदों के लिए सरकार के बाहर के विशेषज्ञों को नियुक्त करने का निर्णय लिया था। 2018 की शुरुआत में जारी संयुक्त सचिव स्तर की नियुक्तियों के लिए विज्ञापन के बाद 6,077 आए जिनमें यूपीएससी द्वारा चयन प्रक्रिया के बाद, नौ अलग-अलग मंत्रालयों / विभागों में 2019 में नियुक्ति के लिए नौ व्यक्तियों की सिफारिश की गई थी। इनमें से एक काकोली घोष ने ज्वाइन नहीं किया बाकी – अंबर दुबे, राजीव सक्सेना, सुजीत कुमार बाजपेयी, दिनेश दयानंद जगदाले, भूषण कुमार, अरुण गोयल, सौरभ मिश्रा और सुमन प्रसाद सिंह – को तीन साल के अनुबंध पर नियुक्त किया गया। अरुण गोयल ने प्राइवेट सेक्टर में लौटने के लिए पिछले साल दिसंबर में इस्तीफा दे दिया था। इन नियुक्तियों में कोई आरक्षण नहीं होने की वजह से SC, ST और OBC का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों ने इसका विरोध किया।
बिहार के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने निशाना साधते हुए कहा कि क्या यूपीएससी की चयन प्रक्रिया राष्ट्र निर्माण के लिए इच्छुक, प्रेरित और प्रतिभाशाली उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित करने में विफल हो रही है या चुनिंदा लोग ज्यादा हैं? क्या यह वंचित वर्गों के लिए दिए गए आरक्षण को दरकिनार और कम करने की एक और चाल नहीं है?