यदि आप शुक्राणुओं की कम संख्या या उनकी गतिशीलता से संबंधित किसी समस्या का सामना कर रहे हैं तो अपनी दिनचर्या में नियमित रूप से योग को शामिल करें। योग करने से शुक्राणुओं की गुणवत्ता में सुधार आता है। योग हमेशा से प्रोस्टेट की सेहत में लाभकारी रहा है। इसमें प्रोस्टेट से जुड़े विकार से बचाव शामिल हैं। यदि प्रोस्टेट का आकार बढ़ गया है तब भी योग करके इसे घटाया जा सकता है। इसके अलावा, नियमित रूप से योग करने से तनाव और एंग्जाइटी कम करने में मदद मिलती है, प्रजनन अंगों की सेहत में सुधार होता है। अध्ययनों से पता चला है कि जिंदगी में यदि तनाव कम है तो यौन जीवन बेहतर होता है और इससे मामूली इरेक्टाइल डिस्फंक्शन (स्तंभन दोष) का उपचार करने में मदद मिलती है।
डॉ रत्ना सक्सेना, फर्टिलिटी कंसल्टेंट, बिजवासन, दिल्ली एनसीआर, नोवा साउथेंड आइवीएफ एंड फर्टिलिटी की बता रही हैं योग करने के फायदे-
इन दिनों जीवनशैली में योग के आधार पर किए जा रहे सुधार काफी लोकप्रिय हो रहे हैं और ये पारंपरिक दवाओं के पूरक हैं। योग करने से सेमिनल ऑक्सीडेटिव तनाव कम होता है और शुक्राणुओं की गतिशीलता में सुधार आता है और यह इसकी प्रजनन क्षमता बेहतर होने का संकेत है। हर दिन एक घंटे योग का अभ्यास करने जैसे कि शारीरिक गतिविधियां एवं आसन, साँस लेने की टेक्निक (प्राणायाम) और ध्यान से शारीरिक एवं मानसिक पहलुओं में बड़ा अंतर आ सकता है।
योग से संचार (सर्कुलेशन) बेहतर होता है, अंदरूनी अंग उचित ढंग से काम करते हैं और यह नसों को सुकून देने में मदद करता है। प्रजनन स्वास्थ्य के संदर्भ में, कुंडलिनी योग सबसे बढ़िया योगाभ्यास माना जाता है जिसमें पौरुष और यौन उत्तेजना पर असर नहीं पड़ता है। यौन ऊर्जा, जिसे शरीर में जैवरसायनिक ऊर्जा कस सबसे ताकतवर स्वरूप माना जाता है, ऊर्जा का एकमात्र स्वरूप है जिसका इस्तेमाल संपूर्ण शारीरिक प्रणाली को तरोताजा करने एवं आध्यात्मिक विकास तथा खुद में बदलाव लाने के लिए किया जा सकता है। इसलिए, यह ऊर्जा मात्रा और गुणवत्ता दोनों को पाने के लिए महत्वपूर्ण है।
अधेड़ उम्र के पुरुषों के लिए योग के लाभ-
जैसे-जैसे पुरुषों की उम्र बढ़ती है, योगाभ्यास पर उनका जोर हड्डियों एवं मांसपेशियों को मजबूत बनाने से अपने स्वास्थ्य की रक्षा करने एवं उसे बरकरार रखने की ओर चला जाता है। इस उम्र में पुरुष जिस प्रमुख समस्या का सबसे अधिक सामने करते हैं, वह है ईडी (इरेक्टाइल डिस्फंक्शन) एवं यौन इच्छा में कमी आना। यह लगातार बढ़ रहे तनाव एवं एंग्जाइटी के कारण भी हो सकता है। साथ ही उम्र से जुड़े हॉर्मोनल असंतुलन जैसी दूसरी शारीरिक समस्यायें भी इसमें योगदान देती हैं। एंग्जाइटी या तनाव पैदा करने वाली कोई भी चीज ईडी में योगदान दे सकती है क्योंकि यह इरेक्शन के लिए जरूरी आराम में हस्तक्षेप करती है। योग एक बेहद आरामदायक चिकित्सा अभ्यास है जो एंग्जाइटी को दूर भगाता है, आपके शरीर को तरोताजा करता है और आपके मूड को बेहतर बनाता है।
योग और पुरुषों का प्रजनन स्वास्थ्य-
योग पुरुषों के प्रजनन संबंधी फंक्शन में सुधार लाने के लिए एंडोक्राइन ऐक्सेस पर काम करता है। कई अध्ययनों में पता चला है कि योग से यूरिनरी कैटेकोलामाइन और एल्डोस्टेरोन के उत्सर्जन में कमी आती है, सीरम टेस्टेस्टेरोन और ल्यूटनाइजिंग हॉर्मोन लेवल घटता है और कॉर्टिसॉल के उत्सर्जन में बढ़ोतरी होती है, यह दिखाता है कि आपके शरीर में हॉर्मोन संबंधी काफी बदलाव हो रहे हैं। कुंडलिनी योग टर्मिनल प्रोस्टेट कैंसर के नियमन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग मुद्रा और लोकस्ट जैसे पोश्चर में संकुचन से प्रोस्टेट पर दबाव पड़ता है, रक्त संचार और प्राण में वृद्धि होती है और टोन सुधरती है। प्रोस्टेटाइटिस जैसी प्रदाह वाली स्थितियों के लिए, दीर्घ प्राणायाम या उज्जायी श्वास आपके अंतरंग हिस्सों को आराम दिलाने में मदद करती हैं। प्रजनन की उम्र में मोटापा होना भी पुरुषों के बाँझपन (मेल इनफर्टिलिटी) से संबंधित है। योग एवं दूसरे शरीर को रिलैक्स करने वाली टेक्निक्स अपनाकर मोटापे को कम करने में मदद मिल सकती है। यह किसी भी दूसरी कॉम्प्लीमेंटरी या वैकल्पिक थेरैपीज से कहीं ज्यादा कारगर हैं।
योग से शरीर के विभिन्न हिस्सों एवं अंगों में रक्त का प्रवाह बढ़ता है और इस तरह शुक्राणु के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। कुछ बेहद लाभदायक योग आसन इस प्रकार हैं :
सूर्य नमस्कार –
पहला चरण – प्रणामासन
सूर्य नमस्कार को मैट के एकदम किनारे पर खड़े होकर शुरू करें। अपने पैरों को एकसाथ रखें और सुनिश्चित करें कि आपका वजन दोनों पैरों पर बराबर है। अपने कंधों को ढीला छोड़ दें और अपने सीने को चौड़ा करें। साँस लें और अपनी दोनों बाँहों को ऊपर उठाएँ। साँस छोड़ें और अपनी हथेलियों को प्रार्थना की स्थिति में अपने सीने के सामने रखें।
दूसरा चरण – हस्त उत्तानासन
अपने हाथों को ऊपर उठाकर पीछे की ओर ले जाएँ, अपने बाइसेप्स (बाँह) को अपने कानों के पास रखें। इस पोज़ के लिए आपको अपने पूरे शरीर को खींचने की जरूरत होती है, यानी अपनी एड़ियों से लेकर अपनी अँगुलियों के पोरों तक में खिंचाव होता है।
तीसरा चरण – पाद हस्तासन
साँस बाहर छोड़ें और कमर के पास से खुद को मोड़ें। आपको अपनी स्पाइन एकदम सीधी रखनी होगी। जब आप साँस लेंगे, अपने हाथों को फर्श पर अपने पैरों के पास रखें।
चौथा चरण – अश्व संचालनासन
साँस लें और बायें पैर को जितना अधिक दूर ले जा सकते हैं, ले जायें। अपनी बाँहों को अपने पैरों के पास रखें और अपने दायें घुटने को मोड़ें। अपना ध्यान आगे की ओर लगाएँ।
पाँचवाँ चरण – पर्वतासन
साँस छोड़ें और अपने हिप्स एवं टेलबोन को उठाएँ। उलटा वी बनाने के लिए आपका सीना नीचे की तरफ होना चाहिए।
अर्ध मत्स्येन्द्र आसन-
अपने पैरों को खींचकर एकदम सीधे बैठें। सुनिश्चित करें कि आपके पैर एक साथ हों और रीढ़ की हडडी पूरी तरह सीधी हो। अपने बायें पैर को मोडें ताकि आपके बायें पैर की एड़ी आपके दायें हिप के पास आ जाए। यदि आप पसंद करते हैं, तो अपने बायें पैर को स्ट्रेच करके रख सकते हैं। बाद में, दायें पैर को घुटने तक ले जाएँ और इसे बायें घुटने के पास रखें। अपने दायें कंधे पर अपना गेज़ सेट करें और अपनी कमर, गर्दन और कंधों को दायीं ओर घुमायें। यह ध्यान रखें कि आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी रहे। स्ट्रेच को बढ़ाने या कम करने के लिए अपने हाथों को रखने के कई तरीके हैं। इसे आसान बनाने के लिए अपने दायें हाथ को अपने पीछे रखें और अपने बायें हाथ को दायें घुटने पर रखें। इस पोजीशन में 30 से 60 सेकंड तक रहें और धीरे-धीरे गहरी साँस लें। साँस छोड़ें और फिर अपने दायें हाथ, फिर अपनी कमर, सीने और सबसे बाद में अपनी गर्दन को पहले की मुद्रा में करें। सीधे बैठने पर रिलैक्स करें। साँस छोड़ें और दूसरी ओर से ये स्टेप्स करने से पहले एकदम सामने की ओर देखें।
हल आसन-
यह फर्टिलिटी और शुक्राणु की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए सबसे प्रभावी आसनों में से एक है। इसे करने के लिए सबसे पहले अपनी पीठ के बल पर लेट जाएँ और अपना पिछला हिस्सा जमीन पर रखें। इसके बाद जितना संभव हो अपने शरीर को स्ट्रेच करें और अपने हाथों को बिल्कुल अपने पास रखें। गहरी साँस लें और अपने पैरों को अपनी कमर तक समानांतर लाने तक उठाएँ। इसके बाद, अपने सिर को मजबूती से जमीन पर रखे रहें और अपनी कमर को अपने हाथों के साथ उठाएँ ताकि आपके पैर स्ट्रेच होकर सिर के उपर से निकल जाएँ। पैरों से अपने सिर के पीछे जमीन को छुएँ।
आज के दौर में युवाओं में शुक्राणुओं की संख्या निरंतर घटने के मामले चिंता का विषय हैं। भागदौड़ वाली जिंदगी और जीवनशैली में हो रहे लगातार बदलावों तथा वयस्क होने पर स्पर्मैटोजेनेसिस से जुड़े पर्यावरणीय घटकों एवं पुरुष प्रिनेटल एक्सपोजर (मैटरनल लाइफस्टाइल या एक्सपोजर का परिलक्षण) का वयस्क पुरुषों के शुक्राणु की उत्पादन क्षमता पर उल्लेखनीय असर होता है। इसलिए, पूरक दवाईयाँ और योग से न्यूरोहॉर्मोनल मैकेनिज्म बेहतर होता है और इससे तनाव एवं एंग्जाइटी में कमी आती है, ऑटोमैटिक फंक्शंस में सुधार होता है और इस तरह, प्रजनन स्वास्थ्य बेहतर होता है।
रिपोर्टर-आभा यादव