इन दिनों प्रतीकों की राजनीति के जरिये सियासी दल बहुजन समाज को अपने पक्ष में लाने के प्रयास में जुटे हैं, खासतौर पर दलित और पिछड़ा वर्ग के सैद्धांतिक रूप से विरोधी दल सार्वजनिक तौर पर बाबा साहब डॉ.भीमराव अम्बेडकर से लेकर तमाम बहुजन नायकों की बात करते हैं, लेकिन इन वर्गों पर जब कभी भी जाति के नाम पर इनका उत्पीडन होता है तो ये दल और इनके बड़े नेता मौन धारण कर लेते हैं, भारतीय संविधान में दलितों और पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों व शिक्षा में मिलने वाले आरक्षण का समर्थन करना तो दूर मनुवादी मानसिकता के पोषक और संविधान विरोधी ताकतें इसका खुलकर विरोध करतीं हैं तो ऐसे मौके पर ये दल परोक्ष रूप से संविधान विरोधी ताकतों का ही समर्थन करते हैं। मंदिरों में बाल्मीकि जयंती का आयोजन करने वाले हाथरस में बाल्मीकि समाज की बेटी के साथ हुए सामूहिक दुराचार के बाद हत्या जैसे गंभीर कृत्य के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज करते हैं। हाल ही में दिल्ली सरकार के मंत्री राजेंद्र पाल गौतम ने विजय दशमी के दिन बौद्ध दीक्षा समारोह में बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिलाई गयी 22 प्रतिज्ञाओं को दोहराया तो भाजपा ने इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के खिलाफ हिन्दू देवी-देवताओं का विरोधी होने का आरोप लगाकर केजरीवाल सरकार पर हमला बोल दिया। विरोध बढ़ता देख और हिन्दू विरोधी आरोप लगने के कारण केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को अपनी हिन्दू विरोधी छवि से उबरने के लिए मंत्री को इस्तीफा दिलाना पड़ा।
दरअसल बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को बौद्ध धर्म ग्रहण करने के दौरान अपने पांच लाख अनुयायियों को 22 प्रतिज्ञाएँ दिलाईं थीं, जिसमे राम-कृष्ण को भगवन ना मानने की भी शपथ दिलाई गयी थी, उन्हीं शपथ को मंत्री राजेंद्र गौतम ने दीक्षा कार्यक्रम में दोहराया, बाबा साहब की ये प्रतिज्ञाएँ भारत सरकार की किताबों और वक्तव्यों के संकलन में प्रकाशित की गयीं हैं, लेकिन इससे पहले इसका कभी विरोध नहीं किया गया पर सांप्रदायिक उभार के कारण भाजपा ने इसका विरोध किया और अपनी हिन्दू विरोधी छवि ना बन जाए इसको ध्यान में रखकर आम आदमी पार्टी नेतृत्व मौन है। आम आदमी पार्टी प्रमुख व दिल्ली राज्य के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपने दफ्तर में अपनी कुर्सी के पीछे बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर और शहीद भगत सिंह की तस्वीर लगा रखी है, लेकिन उनके आदर्शों को वे कितना आत्मसात करते हैं, वह भी किसी से छुपा नहीं है, उन्होंने भी दलितों का वोट पाने के लिए अपने मंत्री द्वारा बौद्ध दीक्षा कार्यक्रम में बाबा साहब द्वारा ली गयीं प्रतिज्ञाओं को दोहराया तो इस पर वे शांत रहे, लेकिन जैसे ही उन पर हिन्दू धर्म की देवी-देवताओं का अपमान करने का आरोप लगा तो उन्होंने अपने मंत्री से इस्तीफा दिलवा दिया, खुद राजेंद्र गौतम के मुताबिक पार्टी को बचाने की खातिर उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दिया। सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर फ़तेह बहादुर का मामना है कि आरक्षित सीटों से जीतकर विधानसभाओं व लोकसभा पहुंचे दलित समाज के प्रतिनिधियों के साथ ही पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधियों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने दलों में अपने समाज को अधिकार दिलाने के लिए शीर्ष नेतृत्व के सामने अपनी आवाज मजबूती के साथ उठायें और वंचितों व शोषितों को उनके अधिकार दिलाएं। इसके साथ ही सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी बनती है कि वे बहुजन समाज के नेताओं पर सजग द्रष्टि रखें, ताकि इन वर्गों के अधिकारों पर कोई अतिक्रमण ना कर सके।
हालाँकि भारतीय संविधान में सवर्णों के साथ ही दलितों और पिछड़ा वर्ग को भी सामान अधिकार हैं, बावजूद इसके इन वर्गों को इनके मूलभूत अधिकार से वंचित रखा गया जो आज भी जारी है, लेकिन वर्ष 1990 में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के लिए मंडल आयोग लागू हुआ तो देश में पिछड़ा वर्ग का राजनीति में प्रभाव बढ़ा और इसी का नतीजा रहा कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 28 साल तक दलितों और पिछड़ा वर्ग की राजनीति करने वाले दलों का दबदबा रहा। इस देश में जब भी बहुजन समाज के लोग अपने समाज को संवैधानिक अधिकार दिलाने की बात करते हैं तो ऐसे में मनुवादी विचारधारा का समर्थन कर रहे दलों के शीर्ष नेतृत्व उनकी इस मांग को दरकिनार करने के लिए इस समाज के महापुरुषों के नाम से कार्यक्रम आयोजित करके इन वर्गों का अपने को हितैषी बताकर इनका वोट पाने की कोशिश में जुट जाते हैं, ताकि ये वर्ग इस तरह के आयोजनों में फंसकर अपने संवैधानिक अधिकार पाने की खातिर किसी भी तरह की कोई मांग ना कर सकें।
कमल जयंत।