घर मां से होता है
मां है तो घर-बार है,
भाई-बहन में प्यार है।
जिंदगी गुलजार है,
दाल संग आचार है।
छुट्टी है, त्यौहार है,
घर मां से होता है।
मां है तो बाप की इज्जत है,
छोटे-बड़े में मोहब्बत है।
शाम-ओ-सुबह में रंगत है,
अपनों को अपनों की चाहत है।
हर हाल में दिल को राहत है,
घर मां से होता है।
मां नहीं, अपनों का अपनापन खत्म,
सुबह-शाम में फर्क खत्म।
जिंदगी की मिठास खत्म,
चैन-ओ-सुकून के पल खत्म।
और तो और पिता की डांट खत्म।
क्योंकि, घर मां से होता है।
– फैसल मुश्ताक