नयी दिल्ली, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह कल यहां राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस का लोकार्पण और ‘राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस 2023: एक रिपोर्ट’ का विमोचन करेंगे।
सहकारिता मंत्रालय ने गुरूवार को यहां बताया कि प्रधानमंत्री के ‘सहकार से समृद्धि’ के विजन को साकार करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण पहल है। सहकारिता मंत्रालय ने देश के विशाल सहकारी सेक्टर की महत्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्र करने के लिए एक सुदृढ़ डेटाबेस की आवश्यकता को पहचाना है। सहकारिता केंद्रित आर्थिक मॉडल को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकारों, राष्ट्रीय संघों और हितधारकों की सहभागिता से राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस का विकास किया गया है।
लोकार्पण समारोह में करीब 1400 प्रतिभागी भाग लेंगे जिनमें केंद्रीय मंत्रालयों, विभागों के सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण, राज्यों, केन्द्र शासित प्रदेश क्षेत्रों के अपर मुख्य सचिव, प्रधान सचिव, सहकारी समितियों के पंजीयक, देशभर की सहकारी समितियां, अन्य सहकारी संघ और यूनियन आदि शामिल हैं। प्रतिभागियों को राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के उपयोग व अनुप्रयोग तथा सहकारी भूदृश्य में सुधार की क्षमता के बारे में जानकारी देने के लिए एक तकनीकी कार्यशाला भी आयोजित की जाएगी ।
राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस में सहकारी समितियों के डेटा को विभिन्न हितधारकों से चरणबद्ध तरीके से एकत्र किया गया है। पहले चरण में, तीन क्षेत्रों यानी प्राथमिक कृषि ऋण समिति, डेयरी और मत्स्यिकी की लगभग 2 लाख 64 हजार प्राथमिक सहकारी समितियों की मैपिंग पूरी की गई। दूसरे चरण में विभिन्न राष्ट्रीय संघों, राज्य संघों, राज्य सहकारी बैंक , जिला केंद्रीय सहकारी बैंक , शहरी सहकारी बैंक , राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण विकास बैंक , प्राथमिक कृषि और ग्रामीण विकास बैंक , सहकारी चीनी मिलों, जिला यूनियनों और बहुराज्य सहकारी समितियों के आंकड़े एकत्रित किए गए। तीसरे चरण में अन्य बाकी क्षेत्रों में 5 लाख 30 हजार से अधिक प्राथमिक सहकारी समितियों के डेटा की राज्य ,संघ कार्यालयों के माध्यम से मैपिंग की गई।
राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस का शुभारंभ सहकारिता के क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित होगा। ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी समितियों का विकास आर्थिक, सामाजिक और सामुदायिक समस्याओं के समाधान, व्यक्तियों के सशक्तिकरण, गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण समुदायों के समग्र कल्याण में अपने योगदान के वादे को पूरा करता है। यह पहल जमीनी स्तर पर एक सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक है जो समृद्ध और ‘आत्मनिर्भर’ भारत की परिकल्पना के अनुरूप है।