प्रयागराज, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेरठ, वाराणसी, सिद्धार्थनगर, जौनपुर, एवं प्रयागराज में तैनात पुलिस इंस्पेक्टरों समेत अन्य पुलिस कर्मियों के खिलाफ जारी विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है। अदालत ने विभागीय कार्रवाई कर रहे सम्बंधित पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी करते हुए उनसे याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों पर जवाब मांगा है।
न्यायालय ने इसी के साथ इंस्पेक्टर उदय प्रताप सिंह, देव कुमार, मुकेश शर्मा, विजय प्रकाश, राजीव चौधरी, दीपक कुमार सिंह, व अन्य पुलिस कर्मियों के विरूद्ध उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14 (1) के अन्तर्गत विभागीय कार्यवाही अग्रिम आदेशों तक स्थगित कर दी है।
यह आदेश न्यायाधीश् प्रकाश पाडिया, जस्टिस अजित कुमार, जस्टिस नीरज तिवारी एवं जस्टिस जेजे मुनीर की अलग-अलग एकल खंडपीठ ने पुलिस विभाग में कार्यरत दर्जनों अलग-अलग पुलिस कर्मियों की याचिकाओं पर पारित किया है। कोर्ट ने इस तरह की अन्य सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने के लिए ऐसे सभी याचिकाओं का बंच बना दिया है।
याची पुलिस इंस्पेक्टरों के सीनियर अधिवक्ता विजय गौतम एवं सहयोगी अधिवक्ता अतिप्रिया गौतम का कहना था कि पुलिस विभाग के अधिकारी जिस मामले में पुलिस कर्मी के खिलाफ एफआईआर दर्ज है, उसी मामले में विभागीय कार्रवाई भी सम्पादित कर रहे हैं। जबकि पुलिस रेगुलेशन के तहत विभागीय कार्रवाई नहीं की जा सकती।
मामले के अनुसार यूपी पुलिस विभाग के निरीक्षक, उपनिरीक्षक व आरक्षियों के विरूद्ध भ्रष्टाचार व अन्य मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट विभिन्न थानों में दर्ज कराई गयी है। इन्हीं क्रिमिनल केसों के आरोपों के सम्बन्ध में उ प्र पुलिस अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दण्ड एवं अपील) नियमावली-1991 के नियम 14 (1) के तहत विभागीय कार्यवाही सम्पादित करते हुए पुलिस विभाग के सक्षम अधिकारियों द्वारा आरोप पत्र निर्गत किये गये हैं। इन पुलिस कर्मियों द्वारा 14 (1) की विभागीय कार्यवाही के विरूद्ध हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर चुनौती दी गई है।
अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि जिन आरोपों में याचीगणों के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गयी है, उन्हीं आरोपों के सम्बन्ध में विभागीय कार्यवाही सम्पादित की जा रही है। क्रिमिनल केस के आरोप व साक्ष्य एवं विभागीय कार्यवाही के आरोप व साक्ष्य एक समान है। वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना था कि पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा 483, 486, 489, 492 एवं 493 में यह व्यवस्था प्रतिपादित की गयी है कि पुलिस कर्मियों के विरूद्ध अगर क्रिमिनल केस प्रचलित है तो उन्हीं आरोपों में विभागीय कार्यवाही नहीं की जा सकती। जब तक क्रिमिनल केस में ट्रायल पूर्ण न हो जाय या फाइनल रिपोर्ट में अपचारी बरी न हो जाय। पुलिस रेग्यूलेशन के पैरा को सर्वोच्च न्यायालय ने जसवीर सिंह के केस में अनिवार्य माना है तथा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि पुलिस रेग्यूलेशन का बिना पालन किये हुए की गयी कार्यवाही विधि सम्मत नहीं है एवं नियम तथा कानून के विरूद्ध है।
गौतम का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कैम्पटन एम पॉल एन्थोनी बनाम भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड तथा हाईकोर्ट द्वारा स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया बनाम आर बी शर्मा व अन्य में यह व्यवस्था प्रतिपादित की गयी है कि यदि क्रिमिनल केस के आरोप एवं विभागीय कार्यवाही के आरोप एक समान है तो विभागीय कार्यवाही क्रिमिनल केस के समाप्त होने तक याचियों के विरूद्ध नहीं की जा सकती।
न्यायालय के इस आदेश से पुलिस कर्मियों को बहुत बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट के इस स्थगन आदेश को सम्बन्धित जिलों के पुलिस अधिकारियों को अवगत कराने के लिये सम्बन्धित जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा रजिस्ट्रार अनुपालन हाईकोर्ट को 48 घण्टे के अन्दर सूचित करने के लिये आदेशित किया गया है। कोर्ट मामले की अगली सुनवाई दिनांक 21 फरवरी 2025 को करेगी।