
मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री की गंगा के उद्गम स्थल गंगोत्री की यात्रा पर कटाक्ष करते हुए कहा, “मोदी जी ने कहा था कि उनको ‘माँ गंगा ने बुलाया है’ पर सच ये है कि उन्होंने गंगा सफ़ाई की अपनी गारंटी को ‘भुलाया’ है। क़रीब 11 वर्ष पहले, 2014 में, नमामि गंगे योजना शुरू की गई थी। योजना में मार्च 2026 तक 42,500 करोड़ रुपए की राशि इस्तेमाल की जानी थी, पर संसद में गंगा से संबंधित सवालों के जवाब से पता चलता है कि दिसंबर 2024 तक केवल 19,271 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। यानी मोदी सरकार ने नमामि गंगे योजना के लिए आवंटित 55 प्रतिशत राशि ख़र्च ही नहीं की। आखिर माँ गंगा के प्रति इतनी गहरी उदासीनता क्यों।”
उन्होंने कहा, “मोदी जी ने 2015 में हमारे एनआरआई साथियों से स्वच्छ गंगा निधि में योगदान देने का आग्रह किया था और मार्च 2024 तक इस फंड में 876 करोड़ रुपए दान दिए गए लेकिन इसका 56.7 प्रतिशत अब तक इस्तेमाल नहीं हुआ है। इस फंड का 53 प्रतिशत सरकारी उपक्रमों से दान लिया गया है। नवंबर 2024 में राज्यसभा में सरकार ने बताया कि नमामि गंगे के 38 प्रतिशत प्रोजेक्ट्स अभी लंबित हैं। सीवेज ट्रीटमेंट संयंत्र बनाने के लिए कुल आवंटित फंड का 82 प्रतिशत ख़र्च किया जाना था, पर 39 प्रतिशत संयंत्र अभी भी पूरे नहीं हुए हैं, और जो पूरे हुए हैं वो चालू ही नहीं हैं। उत्तर प्रदेश -75 प्रतिशत नाले जिन्हें संयंत्र में जाना था, उसका प्रदूषित पानी, सीधे गंगा जी में जा रहा है, इनमें 3513.16 एमएलडी सीवेज डाला जा रहा है। नवंबर 2024 तक इनमें 97 प्रतिशत संयंत्रों में नियमों का पालन नहीं हुआ है। बिहार में 46 प्रतिशत संयंत्र चालू नहीं हैं बाकी मानक पर खरे नहीं उतरते हैं। पश्चिम बंगाल में 40 संयंत्र काम नहीं कर रहे हैं; और 95 प्रतिशत एनजीटी के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।”
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “नवंबर 2024 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण-एनजीटी ने मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा की सफाई बनाए रखने में प्रशासन की विफलता पर कड़ी नाराजगी जताई थी। कड़ी फटकार लगाते हुए ट्रिब्यूनल ने यहां तक सुझाव दिया कि नदी के किनारे एक बोर्ड लगाया जाए, जिसमें लिखा हो कि शहर में गंगा का पानी नहाने के लिए सुरक्षित नहीं है। फ़रवरी 2025 में जारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताज़ा रिपोर्ट में की ताज़ा रिपोर्ट में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का स्तर 2,500 यूनिट प्रति 100 मिलीलीटर की सुरक्षित सीमा से बहुत अधिक पाया गया। प्रयागराज के शास्त्री ब्रिज के पास 11,000 यूनिट प्रति 100 मिली और संगम में 7,900 यूनिट प्रति 100 मिला था। अन्य शोध के मुताबिक़ ठोस कचरे की वृद्धि के कारण गंगा जल में पारदर्शिता घटकर मात्र पांच प्रतिशत रह गई है, जो गंभीर प्रदूषण का संकेत है। मई और जून 2024 के बीच गंगा में प्लास्टिक प्रदूषण में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिससे प्रदूषण का संकट और भी बढ़ गया। गंगा ग्राम के नाम पर मोदी सरकार ने केवल शौचालयों का निर्माण कराया है। पांच राज्यों में गंगा किनारे 1,34,106 हेक्टेयर का वनीकरण करना था, जिसकी लागत 2,294 करोड़ रुपए थी, पर 2022 तक 78 प्रतिशत वनीकरण नहीं हुआ और 85 प्रतिशत फंड इस्तेमाल नहीं हुए, यह सूचना के अधिकार के तहत ख़ुलासा हुआ है। गंगा जीवनदायनी है। भारत की संस्कृति और उसकी आध्यात्मिक धरोहर है, पर मोदी सरकार ने गंगा सफ़ाई के नाम पर माँ गंगा से केवल धोखा ही किया है।”