भारत के हर व्यक्ति की परंपरा और पहचान एक है : मोहन भागवत

नयी दिल्ली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि हमारे धर्म, संस्कृति तथा संस्कार समान हैं और यह भाव हर भारतवासी में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि रहन सहन, भाषा-बोली अलग-अलग हो सकती हैं लेकिन यह अटल सत्य है कि हम सब भारतीय हैं और हमारी परंपरा तथा पहचान एक है।

मोहन भागवत ने संघ के सौ साल पूरे होने पर तीन दिवसीय व्याख्यान माला के तीसरे दिन गुरुवार को यहां विज्ञान भवन में आयोजित “100 वर्ष की संघ यात्रा, नये क्षितिज” पर बोलते हुए कहा कि हमारा बहुधर्मी देश है लेकिन हमारे संस्कार और संस्कृति एक है यह भावना हर भारतवासी में होनी चाहिए। हमारे वैदिक काल में जो शिक्षा थी उसकी प्रासंगिकता का ध्यान रखते हुए उसे लागू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि धर्म बदलने से कौम नहीं बदलती है और सबको यह ध्यान रखने की जरूरत है कि हमारी पहचान और परंपरा एक है। उनका यह भी कहना था कि अखंड भारत अब भी है और इसे सिर्फ समझने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि वैदिक काल की भाषा संस्कृत थी और संस्कृत भारत के मूल स्रोत को जानने के लिए अनिवार्य है लेकिन देश की शिक्षा व्यवस्था में इसे अनिवार्य बनाने की बजाय इसके अनुकूल माहौल बनाने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि भाषा को शिक्षा में थोपा नहीं जाना चाहिए। संघ किसी धर्म या संप्रदाय का विरोधी नहीं है इसलिए हम किसी धर्म के व्यक्ति के नाम से परहेज नहीं करते हैं लेकिन आक्रांताओं के नाम पर किसी शहर या सड़क का नाम नहीं होना चाहिए।

संघ प्रमुख ने जनसंख्या असंतुलन पर चिंता जताई और कहा कि घुसपैठ रोकने के लिए हर स्तर पर प्रयास होने चाहिए। उन्होंने जनसंख्या असंतुलन को चिंता का विषय बताया लेकिन कहा कि इसे दूर करने के उपाय होने चाहिए। तीन बच्चों होने की बात को सही बताते हुए उन्होंने कहा कि तीन से ज्यादा बच्चे नहीं होने चाहिए।

संघ प्रमुख ने कहा कि संघ को लेकर लोगों की अवधारणा धीरे धीरे बदल रही है। उन्होंने जयप्रकाश नारायण का उदाहरण दिया और कहा कि जो पहले संघ के एकदम खिलाफ थे उन्होंने आपातकाल में कहा कि संघ ही देश को बचा सकता है। यही बदलाव है और संघ के प्रति यह बदलाव धीरे धीरे आ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि संघ का स्वयं सेवक अत्याचार नहीं करता है।

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