न्यायमूर्ति गवई पर हमले की कोशिश, मोदी और अन्य नेताओं ने की कड़ी निंदा

नयी दिल्ली, उच्चतम न्यायालय में सोमवार सुबह एक असामान्य घटनाक्रम में एक अधिवक्ता राकेश किशोर ने अदालती कार्यवाही के दौरान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर.गवई पर कोई वस्तु फेंकने की कोशिश की, जिसके बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) ने उस अधिवक्ता को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।

इस घटना की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तथा पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी और कई अन्य नेताओं ने कड़ी निंदा की है।

अदालत कक्ष में सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने उन पर कोई वस्तु फेंकने की कोशिश की जिसके तुरंत बाद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत हरकत में आकर उस अधिवक्ता को पकड़ लिया और कक्ष से बाहर ले गये। इस व्यवधान के कारण अदालत की कार्यवाही कुछ देर तक बाधित रही लेकिन बाद में स्थिति सामान्य हो गयी।

प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सुरक्षाकर्मी जब अधिवक्ता को बाहर ले जा रहे थे तो उसने चिल्लाते हुए कहा, “सनातन धर्म का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान”।

मुख्य न्यायाधीश ने संयम दिखाते हुए व्यवधान के तुरंत बाद कार्यवाही फिर से शुरू की। उन्होंने दूसरे वकीलों से बहस जारी रखने का आग्रह करते हुए शांतिपूर्वक कहा, “ध्यान मत भटकाइए। हम इससे विचलित नहीं हैं।”घटना के बाद अदालत कक्ष के आसपास सुरक्षा कड़ी कर दी गयी।

प्रधानमंत्री ने न्यायमूति गवई पर हमले की घटना को निंदनीय करार देते हुए कहा है कि इस तरह के कृत्योंं की भारतीय समाज में कोई जगह नहीं है। उन्होंने घटना के बाद मुख्य न्यायाधीश से फोन पर बात भी की ।

श्री मोदी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, ” भारत के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बी आर गवई जी से बात की। आज सुबह सुप्रीम कोर्ट परिसर में उन पर हुए हमले से हर भारतीय क्षुब्ध है। हमारे समाज में ऐसे निंदनीय कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है। यह अत्यंत निंदनीय है।”

न्यायमूर्ति गवई के धैर्य की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इससे न्याय के मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का पता चलता है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए निंदा की है।

उन्होंने कहा कि यह घटना सोशल मीडिया पर फैली गलत सूचनाओं का परिणाम है। उन्होंने इस घटना पर मुख्य न्यायाधीश की शांत प्रतिक्रिया की सराहना की है। श्री मेहता ने कहा “यह वास्तव में उत्साहजनक है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश ने देश के शीर्ष न्यायालय की उदारता और गरिमा के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की । मैं केवल यही आशा करता हूँ कि इस उदारता को अन्य लोग संस्था की कमज़ोरी न समझें।”

कांग्रेस संसदीय दल की नेता सोनिया गांधी ने मुख्य न्यायाधीश पर हुए हमले को संविधान पर हमला करार दिया है। उन्होने एक वक्तव्य में कहा “भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश पर उच्चतम न्यायालय में हुए हमले की निंदा करने के लिए कोई भी शब्द पर्याप्त नहीं है। यह न केवल उन पर, बल्कि हमारे संविधान पर भी हमला है।”

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि न्यायमूर्ति.गवई पर हमले का प्रयास अभूतपूर्व, शर्मनाक और घृणित है। यह हमारी न्यायपालिका की गरिमा और विधि के शासन पर हमला है। मुख्य न्यायाधीश अपनी योग्यता, निष्ठा और दृढ़ता के बल पर सर्वोच्च न्यायिक पद पर पहुँचे हैं और उनको इस तरह निशाना बनाना बेहद विचलित करने वाली स्थिति है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी-माकपा ने इस घटना को घृणित करार देते कड़ी निंदा की । पार्टी ने अपने बयान में कहा ‘”यह कृत्य भाजपा-आरएसएस द्वारा फैलाए जा रहे ज़हर और हमारे समाज के लिए इसके ख़तरनाक परिणामों को दर्शाता है।”

बीसीआई ने मुख्य न्यायाधीश पर हमले के मामले में अधिवक्ता राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।बीसीआई के आधिकारिक निलंबन आदेश में कहा गया है, “यह अंतरिम आदेश अधिवक्ता अधिनियम, 1961 और बार काउंसिल ऑफ इंडिया के पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानकों पर नियमों के अध्याय-दो (भाग-छह), विशेष रूप से धारा-एक, नियम 1, 2 और 3 के तहत जारी किया गया है, जो यह अनिवार्य करते हैं कि एक वकील अदालत में सम्मान और आत्मसम्मान के साथ आचरण करे, अदालतों के प्रति सम्मानजनक रवैया बनाए रखे और न्यायिक कार्यवाही को प्रभावित करने वाले अवैध या अनुचित साधनों से दूर रहे।

बीसीआई ने अधिवक्ता को कहा है “आपका आचरण उपर्युक्त नियमों और न्यायालय की गरिमा के विरुद्ध है। अत: आपको अर्थात अधिवक्ता राकेश किशोर को तत्काल प्रभाव से प्रैक्टिस करने से निलंबित किया जाता है।”

आदेश में आगे कहा गया है कि निलंबन अवधि के दौरान अधिवक्ता (राकेश किशोर) भारत में किसी भी न्यायालय, न्यायाधिकरण या प्राधिकरण के समक्ष उपस्थित नहीं हो सकते, कार्य नहीं कर सकते, पैरवी नहीं कर सकते या प्रैक्टिस नहीं कर सकते। अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की जाएगी और कारण बताओ नोटिस जारी करके अधिवक्ता से 15 दिनों के भीतर यह स्पष्ट करने को कहा जाएगा कि निलंबन क्यों जारी न रखा जाए।

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