के आखिरी मसौदे पर बैठक जारी है। समझौते का मसौदा सभी देशों के प्रतिनिधियों को पढ़ने के लिए दिया गया है। इस समझौते में क्लाइमेट जस्टिस की बात है। इसमें बड़े ताकतवर देशों पर ज़िम्मेदारी डाली गई है और ये समझौता ऐतिहासिक टर्निंग प्वाइंट होगा। इस अंतिम मसौदे का भारत ने स्वागत किया है।समझौते के अंतिम मसौदा में वैश्विक तापमान की सीमा दो डिग्री सेल्सियस से ‘काफी कम’ रखने और इस समस्या से निपटने में विकासशील देशों की मदद के लिए वर्ष 2020 से सौ अरब डॉलर प्रति वर्ष की प्रतिबद्धता का प्रस्ताव है।प्रतिनिधियों को दस्तावेज का अध्ययन करने के लिए तीन घंटे का विराम दिया गया, लेकिन वार्ताकार करार को अंतिम रूप देने के लिए परदे के पीछे काम में जुटे हुए थे। ओलांद ने करार पर आगे बढ़ने के लिए भारत को मनाने के मकसद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी बात की।
संयुक्त राष्ट्र के इस सम्मेलन के लिए पेरिस में मौजूद केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि पहली नजर में यह मसौदा भारत के लिए अच्छा है। इसमें रहन-सहन के भारतीय सिद्धांत को जगह मिली है और पर्यावरण संरक्षण की ज्यादा जिम्मेदारी अमीर देशों पर डाली गई है। जलवायु सम्मेलन के अध्यक्ष प्रेसिडेंट लॉरेंट फेबियस ने आज रात तक आखिरी डील की उम्मीद जताई है। फेबियस ने कहा कि ये समझौता आपसी भरोसा बनाने वाला है। वहीं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने अपने संदेश में कहा है कि सारी दुनिया हमें देख रही है, प्रकृति हमें आपात संदेश भेज रही है, हमें इस धरती को हर हाल में बचाना है। मून ने कहा हमें मज़बूत और न्यायपूर्ण समझौता करना है, मैं विकसित देशों से मदद करने की अपील करता हूं।फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रास्वां ने अपने संदेश में कहा, हम एक निर्णायक बिंदु पर खड़े हैं। सवाल है कि हम कोई समझौता चाहते हैं या नहीं। यह समझौता महत्वाकांक्षी और यथार्थवादी है।